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परीक्षागुरु.
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उसै किसी तरह कल नहीं पडती थी. जब वह दिल्ली पहुंची तो उस्नें अपनें घरका और ही रङ्ग देखा न लोगों की भीड़, न हँसी दिल्लगी की बातें, सब मकान सूना पड़ा था और उस्मैं पांव रखते ही डर लगता था जिस्पर विशेष यह हुआ कि आते ही यह भयङ्कर ख़बर सुनी जब सै उस्ने यह ख़बर सुनी उस्के आंसू पल भर नहीं बन्द हुए वह अपनें पतिके लिये प्रसन्नता सै अपना प्राण देने को तैयार थी.

इधर लाला मदनमोहन अपनें स्वार्थपर मित्रों सै नए, नए बहानों की बातें सुन्ते फिरते थे इतनें मैं एकाएक कान्सटेबल ने कोचमैंन को पुकार कर बग्गी खड़ी कराई और नाज़िर नें पास पहुंचतेही सलाम करके वारन्ट दिखाया, लाला मदनमोहन उस्को देखते ही सफ़ेद होगए, सिर झुका लिया, चहरेपर हवाइयां उडनें लगी, मुखसै एक अक्षर न निकला. हरकिशोर नें एक खखार मारी परन्तु मदनमोहन की आंख उस्के सामनें न हुई. निदान मदनमोहन नें नाज़िर को संकेत मैं अपनी पराधीन्ता दिखाई इस्पर सबलोग कचहरी को चले.

मदनमोहन अदालत मैं हाकम के साम्‌नें खड़े हुए उस्समय लाजसै उन्की आंख ऊंची नहीं होती थी. हाकम को भी इसबात का अत्यंत खेद था परन्तु वह कानून सै परबस थे,

"हमको आपकी दशा देखकर अत्यंत खेद है और इस हुक्म के जारी करनें का बोझ हमारे सिर आपड़ा इस्सै हमको और भी दुःख होता है परन्तु हमारे आपके निजके संबन्ध को हम अदालत के काम मैं शामिल नहीं कर सक्ते ताजकी वफ़ादारी, ईमान्दारी, मुल्क का इन्तज़ाम सब लोगों की हरक़सी,