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परीक्षागुरू.
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ब्रजकिशोर वहां जा पहुंंचे और मदनमोहन नें अपनें मन का सब संदेह उन्हें कह सुनाया.

"एक तो ज़ो लोग प्रथम स्वार्थबस प्रीति करते हैं उन्की कलई ऐसे अवसर पर खुल जाती है. दूसरे साधारण लोगों की स्तुति निन्दा कुछ भरोसे लायक़ नहीं होती वह किसी बात का तत्व नहीं जान्ते प्रगट मैं जैसी दशा देखते हैं वैसा ही कहनें लगते हैं बल्कि उसीके अनुसार बरताव करते हैं इस्सै साधारण लोगों की प्रतिष्ठा योग्यताके अनुसार नहीं होती द्रव्य अथवा जाहरदारी के अनुसार होती है और द्रव्य अथवा जाहरदारीके परदे तले घोर पापी अपने पापोंको छिपाकर क्रम, क्रम सै प्रतिष्ठित लोगों मैं मिल सकता है बल्कि प्रतिष्ठित लोगों मैं मिलना क्या? कोई पूरा चालाक मनुष्य हो तब तो वह द्रव्य के भरम और जाहर दारी के बरताव सै द्रव्य तक पैदा कर सकता है! ऐसा मनुष्य पहले अपनें द्रव्य अथवा योग्यता का झूटा प्रपंच फैला कर लोगोंके मनमें अपना विश्वास बैठाता है और विश्वास हुए पीछै कमाई की अनेक राह सहज मैं उस्के हाथ आ जाती है लोग उस्को अपनें आप धीरनें लगते हैं कभी, कभी ऐसे मनुष्य अपनी धूर्तता सै सच्चे योग्य अथवा धनविनों सै बढकर काम बना लेते हैं यद्यपि अंत मैं उन्की कलई बहुधा खुल जाती है परंतु साधारण लोग केवल बर्तमान दशा पर दृष्टि रखते हैं. जिस्समय जिसकी उन्नति देखते हैं उन्नति का मूल कारण निश्चय किये बिना उस्की बडाई करनें लगते हैं उस्के सब काम बुद्धिमानी के समझते हैं इसी तरह जब किसी की प्रगट मैं अवनति दिखाई देती है तो वह उसकी मूर्खता समझते हैं और उसके गुणों मैं भी