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परीक्षागुरु.
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कि "बाहर गए" लाचार मदनमोहन को वहां सै भी खाली हाथ फिरना पड़ा. और अब और मित्रोंके यहां जानें का समय नहीं रहा इस लिये निराश होकर सीधे अपनें मकान को चले गए.


प्रकरण ३४.


हीनप्रभा (बदरोबी).

नीचन के मन नीति न आवै। प्रीति प्रयोजन हेतु लखावै॥
कारज सिद्ध भयो जब जानें। रंचकहू उर प्रीति न माने॥
प्रीति गए फलहू बिनसावै। प्रीति विषै सुख नैक न पावै॥
जादिन हाथ कछू नहीं आवै। भाखि कुबात कलंक लगावै॥
सोइ उपाय हिये अवधारै। जासु बुरो कछु होत निहारै॥
रंचक भूल कहूं लख पावै। भांति अनेक बिरोध बढावै॥ +[]

बिदुरप्रजागरे.

लाला मदनमोहन मकान पर पहुंचे उस्समय ब्रजकिशोर वहां मौजूद थे.

लाला ब्रजकिशोर नें अदालत का सब बृत्तान्त कहा उस्मैं मदनमोहन मोदी के मुकद्दमें का हाल सुन्कर बहुत प्रसन्न हुए उस्समय चुन्नीलाल ने संकेत मैं ब्रजकिशोर के महन्तानें की याद


  1. + निवर्तनाने सौहार्दे प्रोति र्नीचे प्रणश्यति।
    याचैव फलनिर्तत्तिः सौहृदे चैव यन्सुखम्॥
    यतते अपवादाय यत्न मारभते क्षये।
    अल्पे प्यपकृते मोहन् न शान्ति मधिगच्छति॥