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परीक्षागुरु.
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की नौकरी सै बड़ा असर हुआ था परन्तु अबतक ब्रजकिशोर की तरफ सै उस्का मन पूरा साफ़ न था. यह बातें ब्रजकिशोर के स्वभाव सै इतनी उल्टी थीं कि ब्रजकिशोर के इतने समझाने पर भी चुन्नीलाल का मन न भरा. वह सन्देह के झूले मैं झोटे खारहा था और बड़ा विचार करके उस्नें यह युक्ति सोची थी कि "कुछ दिन दोनों को दम मैं रक्खूं, ब्रजकिशोर को मदनमोहन की सफ़ाई की उम्मेद पर ललचाता रहूं और इस काम की कठिनाई दिखा, दिखाकर अपना उपकार जताता रहूं. मदनमोहन को अदालत के मुकद्दमों मैं ब्रजकिशोर से मदद लेने की पट्टी पढाऊं पर बेपरवाई जतानें के बहाने सै दोनों मैं परस्पर काम की बात खुल कर न होनें दूं जिस्मैं दोनों का मिलाप होता रहै उन्के चित्त को धैर्य मिलनें के लिये सफाई के आसार, शिष्टाचार की बातें दिन, दिन बढ़ती जायं परन्तु चित्त की सफाई न होनें पाए, और दोनों की कुंजी मेरे हाथ रहै."

ब्रजकिशोर चुन्नीलाल की मुखचर्या सै उस्के मन की धुकड़ पुकड़ पहचान्ता था इसलिये उस्नें जाती बार हीरालाल के भेजनें की ताकीद कर दी थी वह जान्ता था कि हीरालाल बेरोज़गारी सै तंग है वह अपनें स्वार्थ सै चुन्नीलाल को सच्ची सफ़ाई के लिये बिवस करेगा और उस्की ज़िद के आगे चुन्नीलाल की कुछ न चलेगी. निदान ऐसाही हुआ. हीरालाल नें ब्रजकिशोर की सावधानी दिखाकर चुन्नीलाल को बनावट के बिचार सै अलग रक्खा, ब्रजकिशोर की प्रामाणिकता दिखाकर उसै ब्रजकिशोर से सफाई रखनें के वास्तै पक्का किया, मदनमोहन के काम बिगडनें की सूरत बताकर आगे को ब्रजकिशोर का ठिकाना बनानें की