"आप के जी मैं मेरी तरफ का संदेह हो रहा है इस्सै आप को ऐसा ही भ्यासता होगा परन्तु इन्मैं सै कौन्सी बात आप को खुशामद की मालूम हुई?"
"मनुस्मृति मैं कहा है "आकृति, चेष्टा, भाव, गति, बचन . रीति, अनुमान॥ नैन सेन, मुखकांति लख मन की रुचि पहिचान॥ [१]‡" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "तुम कहते हो कि "आप नें जो कुछ भला बुरा कहा मेरी भलाई के लिये कहा" परन्तु उस्समय तुम यह सर्वथा नहीं समझते थे तुम्हारे कामों सै यह स्पष्ट जाना जाता था कि तुम मेरी बातोंसै अप्रसन्न हो और तुह्मारा अप्रसन्न होना अनुचित न था क्योंकि मेरी बातों सै तुह्मारा नुक्सान होता था मुझको इस्बातका पीछै बिचार आया मुझको इस्समय इन बातों के जतानें की ज़रूरत न थी परन्तु मैंने इसलिये जतादी कि मैं भी सच झूंट को पहचान्ता हूं सचाई बिना मुझ सै सफाई न होगी"
"आप की मेरी सफाई क्या? सफाई और बिगाड बराबर वालों मैं हुआ करता है, आप तो मेरे प्रतिपालक हैं आप की बराबरी मैं कैसे कर सकता हूं?" मुन्शी चुन्नीलाल नें गंभीरता सै कहा.
यह तो बहानें साजी की बातैं हैं सफाई के ढंग और ही हुआ करते हैं मुझको तुम्हारा सब भेद मालूम है परन्तु तुमनें अबतक कौन्सी बात खुल के कही?" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "मैं पूछता हूं कि तुमनें मदनमोहन के यहां सै सिवाय तन-
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‡ आकारै रिङगितैर्गत्या चेष्टया भाषितेन च॥
नेत्रवक्त्र विकारश्च गृह्मतेन्त र्गतम्मनः॥