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परीक्षागुरु.
२०२
 

प्रकरण २८.
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फूटका काला मुंह.

फूट गए हीरा की बिकानी कनी हाट, हाट॥
काहू घाट मोल काहू बाढ मोल कों लयो॥
टूट गई लंका फूट मिल्यो जो बिभीषण है॥
रावन समेत बंस आसमान को गयो॥
कहे कविगंग दुर्योधन सो छत्रधारी॥
तनक के फूटते गुमान वाको नै गयो।
फूटेते नर्द उठ जात बाजी चौपर की॥
आपस के फूटे कहु कौन को भलो भयो॥?॥

गंग.

थोडी देर पीछे मुन्शी चुन्नीलाल आ पहुंचा परन्तु उस्के चहरे का रंग उड़ रहा था लाज सै उस्की आंख ऊंची नहीं होती थी प्रथम तो उस्की सलाह सै मदनमोहन का काम बिगड़ा दूसरे उस्की कृतघ्नता पर ब्रजकिशोर नें उस्के साथ ऐसा उपकार किया इसलिये वह संकोच के मारे धरती मैं समाया जाता था.

"तुम इतनें क्यों लजाते हो? मैं तुम सै ज़रा भी अप्रसन्न नहीं हूं बल्कि किसी, किसी बात मैं तो मुझको अपनी ही मूल मालूम होती है मैं लाला मदनमोहनकी हरेक बातपर हदसै ज्यादाः ज़िद करनें लगता था परन्तु मेरी वह ज़िद अनुचित थी. हरेक मनुष्य अपनें बिचार का आप धनी है मैं चाहता हूं कि आगे को ऐसी सूरत न हो और हम सब एक चित्त होकर रहैं परन्तु मैनें