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दिवाला.
 


"हमारी रक़म हमारे पल्ले डालो फिर हम कुछ गड़बड़ न करेंगे" दूसरेनें कहा.

"तुम पहले अपनें लेनें का चिट्ठा बनाओ, अपनी. अपनी दस्तावेज़ दिखाओ, हिसाब करो, उस्स00मय तुम्हारा रुपया तत्काल चुका दिया जायगा" मुन्शी चुन्नीलाल नें जवाब दिया.

"यह लो हमारे पास तो यह रुक्का है" "हमारा हिसाब यह रहा" "इस रसीद को देखिये" "हमनें तो अभी रक़म भुगताई है" इस तरह पर चारों तरफ सै लोग कहनें लगे.

"देखो जी! तुम बहुत हल्ला करोगे तो अभी पकड़ कर कोतवाली मैं भेज दिए जाओगे और तुम पर हतक इज़्जत की नालिश की जायगी नहीं तो जो कुछ कहना हो धीरज से कहो" मास्टर शिंभूदयाल नें अवसर पाकर दबानें की तजवीज की.

"हम को लड़नें झगड़नें की क्या ज़रूरत है? हम तो केवल जवाब चाहते हैं जवाब मिले पीछे आप सै पहले हम नालिश कर देंगे" निहालचन्द ने सब की तरफ़ से कहा.

"तुम वृथा घबराते हो हमारा सब माल मता तुम्हारे साम्हनें मौजूद है हमारे घर मैं घाटा नहीं है ब्याज समेत सब को कौड़ी, कौड़ी चुका दी जायगी" लाला मदनमोहन ने कहा.

"कोरी बातोंसैं जी नहीं भरता" निहालचन्द कहनें लगा "आप अपना बही खाता दिखादें. क्या लेना है? क्या देना है? कितना माल मौजूद है? जो अच्छी तरह हमारा मन भर जायगा तो इम नालिश नहीं करेंगे"

"काग़ज़ तो इस्समय तैयार नहीं है" लाला मदनमोंहन नें लजा कर कहा.

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