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संशय.
 

सदैव दृढ रखना चाहिये निर्बल मन के मनुष्य जिस तरह की ज़रा जरासी बातों मैं बिगड़ खड़े होते हैं दृढ मन के मनुष्य को वैसी बातों की ख़बर भी नहीं होती इसलिये छोटी, छोटी बातों पर बिशेष बिचार करना कुछ तारीफ़ की बात नहीं है और निश्चय किए बिना किसी की निंदित बातों पर विश्वास न करना चाहिये. किसी बात मैं संदेह पड़ जाय तो स्वच्छ मन से कह सुनकर उस्की तत्काल सफ़ाई कर लेनी अच्छी है क्योंकि ऐसे झूंटे, झूंटे वहम संदेह और मनःकल्पित बातों से अबतक हज़ारों घर बिगड़ चुके हैं.,,

"खैर! और बातों मैं आप चाहैं जो कहैं परन्तु इतनी बात तो आप भी अंगीकार करते हैं कि मदनमोहन की और मेरी मित्रता के विषय मैं आप नें मेरे विपरीत चर्चा की बस इतना प्रमाण मेरे कहनें की सचाई प्रगट करनें के लिये बहुत है" हरकिशोर कहनें लगा "आप का यह बरताव केवल मेरे संग नहीं है बल्कि सब संसार के संग है आप सब की नुक्तेचीनी किया करते हैं"

"अब तो तुम अपनी बात को सब संसारके साथ मिलाने लगे परंतु तुम्हारे कहनें सै यह बात अंगीकार नहीं हो सक्ती जो मनुष्य आप जैसा होता है वैसाही सब संसार को समझता है मैंनें अपना कर्तव्य समझकर अपनें मन के सञ्चे, सच्चे विचार तुम सै कह दिए अब उन्को मानों या न मानों तुम्हैं अधिकार है", लाला ब्रजकिशोर नें स्वतन्त्रता से कहा.

"आप सच्ची बात के प्रगट होनैं से कुछ संकोच न करैं सम्बन्धी हो अथवा बिगाना हो जिस्सै अपनी स्वार्थ हानि होती है