पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१३७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२९
क्षमा.
 

एक अपराधी अपना कर्तव्य भूल जाय तो क्या उस्की देखा देखी हम को भी अपना कर्तव्य भूल जाना चाहिये सादीने कहा है “होत हुमा याही लिये सब पक्षिन को राय ॥ अस्थिभक्ष रक्षे तनहि काहू को न सताय ॥"*[१] दूसरे का उपकार याद रखना वाजवी बात है परंतु अपकार याद रखने मैं या यों कहो कि अपने कलेजे का घाव हरा रखनें मैं कौन्सी तारीफ़ है? जो दैव योग से किसी अपराधी को औरों के फ़ायदे के लिये दंड दिवानें की ज़रूरत हो तो भी अपनें मन मैं उस्की तरफ़ दया और करुणा ही रखनी चाहिये"

"ये सब बातें हँसी ख़ुशी मैं याद आती हैं क्रोध मैं बदला लिये बिना किसी तरह चित्त को सन्तोष नहीं होता" लाला मदनमोहन ने कहा.

"बदला लेनें का तो इस्सै अच्छा दूसरा रस्ता ही नहीं है कि वह अपकार करे और उस्के बदले आप उपकार करो" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "जब वह अपनें अपराधों के बदले आप की महेरबानी देखेगा तो आप लज्जित होगा और उस्का मन ही उस्को धिःकारनें लगेगा. बैरी के लिये इस्सै कठोर दंड दूसरा नहीं है परंतु यह बात हर किसी से नहीं हो सक्ती. तरह, तरह का दुःख, नुक्सान और निन्दा सहनें के लिये जितनें साहस, धैर्य और गंभीरता की ज़रूरत है बैरी सै बैर लेनें के लिये उन्की कुछ भी ज़रूरत नहीं होती. यह काम बहुत थोड़े आदमियों सैं बन पड़ता है पर जिनसै बन पड़ता है वही सच्चे धर्मात्मा हैं:—


    • हुमाय बरसरे मुर्गां अज़ां शरफ़ दारद॥

    किउम्तुख्वां खुरदो तायरे नयाज़ारद॥