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स्वतंत्रता और स्वेच्छाचार'
 

साधारण सिपाही का भेष बना कर लड़ाई मैं लड़ मरा परन्तु अपने देशियों की स्वतन्त्रता शत्रुके हाथ न जाने दी"

"जब आप स्वतन्त्रता को ऐसा अच्छा पदार्थ समझते हैं तो आप लाला साहब को इच्छानुसार काम करने से रोककर क्यों पिंजरेका पंछी बनाया चाहते हैं ? ” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“यह स्वतन्त्रता नहीं स्वेच्छाचार है ; और इन्कों एक समझनें से लोग बारम्बार धोखा खाते हैं” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे ‘ईश्वर में मनुष्यों को स्वतन्त्र बनाया है पर स्वेच्छाचारी नहीं बनाया क्योंकि उस्को प्रकृति के नियमों में अदलबदल करने की कुछ शक्ति नहीं दी गई वह किसी पदार्थ की स्वाभाविक शक्ति में तिलभर घटा बढ़ी नहीं करसक्ता जिन पदार्थों मैं अलग, अलग रहने अथवा रसायनिक संयोग होने से जो, जो शक्ति उत्पन्न होने का नियम ईश्वर ने बना दिया है वृद्धि द्वारा उन पदार्थों की शक्ति पहचानकर केवल उनसै लाभ लेने के लिये मनुष्य को स्वतन्त्रता मिली है इसलिये जो काम ईश्वर के निय मानुसार स्वाधीन भाव से किया जाय वह स्वतन्त्रता में समझा जाता है और जो काम उसके नियमों के विपरीत स्वाधीन भाव से किया जाय वह स्वेच्छाचार और उस्का स्पष्ट दृष्टांत यह है कि शतरंज के खेल में दोनों खिलाड़ियों को अपनी मर्जी जब चाल चलने की स्वतन्त्रता दी गई है परंतु वह लोग घोड़े को हाथी की चाल या हाथीको घोडे की चाल नहीं चल सक-और जो वे इस्तरह चलें तो उनका चलना शतरंज के