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सुरा(शराब).
 

"रात को चांद अपनी चांदनी से सब जगत को रुपहरी बना देता है उस समय दरिया किनारे हरियाली के बीच मीठी तान कैसी प्यारी लगती है?” हकीम अहमदहुसैन ने कहा, “पानी की झरने की झनझनाहट, पक्षियों की चहचआहट, हवा की सनसनाहट, बाजे के सुरों से मिलकर गानेवाले की लय को चौगुना बढ़ा देते हैं. आहा! जिस समय यह समा आंख के सामने हो स्वर्ग का सुख तुच्छ मालूम देता है।"

"जिसमें यह बसंत ऋतु तो इसके लिये सबसे बढ़कर है" पंडितजी कहने लगे, नई कोपल, नये पत्ते, नई कली, नए फूलों से सज सजाकर वृक्ष ऐसे तैयार हो जाते हैं जैसे बुड्ढों में नए सिरे से जवानी आ जाये."

"निस्संदेह, वहां कुछ दिन रहना हो, सुख भोग की सब सामग्री मौजूद हो, और भीनी-भीनी रात में तालपुर के साथ किसी पिकबयनी की आवाज आकर कान में पड़े तो पूरा आनन्द मिले” मास्टर शिंभूदयाल नें कहा.

“शराब की चस बिना यह सब मज़ा फीका है” मुन्शी चुन्नीलाल बोले.

“इसमें कुछ संदेह नहीं” मास्टर शिंभूदयाल ने सहारा लगाया. "मन की चिन्ता मिटाने के लिये तो ये अक्सीर का गुण रखती है इसकी लहरों के चढ़ाव उतार में स्वर्ग का सुख तुच्छ मालूम होता है इसके जोश में बहादुरी बढ़ती है बनावट और छिपाव दूर हो जाता है हरेक काम में मन खूब लगता है."

"बस विशेष कुछ न कहो ऐसी बुरी चीज़ की तुम इतनी तारीफ़ करते हो इसे मालूम होता है कि तुम इस समय भी