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प्रिय अथवा पिय्
 


नाम से तार आप के पास आ गया और आपने रुपये उसको दे दिये, परंतु वह तार उन्हीं के किसी साथी ने आप के आढ़तिये के नाम से आपको दे दिया था इसलिये यह भेद खुला उस समय शाहज़ादे का पता न लगा! एक बार एक मामला कराने वाला एक मामला आप के पास लाया था जब उसने कहा था कि “सरकार में रसद के लिये लकड़ियों की ख़रीद है और तहसीलमे में ढाई मन का भाव है. मैं सरकारी हुक्म आप को दिखा दूंगा आप चार मन के भाव में मेरी मारफत एक जंगलवाले की लकड़ी लेनी कर लें" यह कहकर उसने तहसील से निर्खनामे की दस्तख़ती नक़ल लाकर आपको दिखा दी पर उस भाव में सरकार की कुछ ख़रीददारी न थी! इनके सिवाय जिस तरह बहुत से रसायनी तरह-तरह का धोखा देकर सीधे आदमियों को ठगते फिरते हैं इसी तरह यह भी जुआरी बनानें की एक चाल है, जिस काम में वे लागत और बेमेंहनत बहुत से फायदा दिखाई दे उसमें बहुधा कुछ न कुछ धोकेबाज़ी होती है ऐसे मामले वाले ऊपर से सब्जबाग दिखाकर भीतर कुछ न कुछ चोरी जरूर रखते हैं”

"बाबू साहब! मैंने जिस राह में ताश खेलने के वास्ते कहा था वह हरगिज जुए में नहीं गिनी जा सकती परंतु आप उसको जुआ ही ठहराते हैं तो कहिये जुए में क्या दोष है? बिहारी बाबू मामला बिगड़ता देखकर बोले "दिवाली के दिनों में सब संसार जुआ खेलता है और असल में जुआ एक तरह का व्यापार है जो नुक्सान के डर से जुआ वर्जित हो तो और सब तरह के व्यापार भी वर्जित होने चाहियें, और व्यापार में घाटा देने