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परीक्षा गुरु
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रुपये अब तक खर्च हो चुके थे पर काम आधा भी नहीं बना था और ख़र्च के वास्ते वहां से ताकीद पर ताकीद चली आती थी परमेश्वर जाने अबदुर्रहमान को अपने घर ख़र्च के वास्ते रुपये की जरूरत थी या मदद के वास्ते रुपये की ज़रूरत थी.

चौथा ख़त एक अख़बार के एडीटर का था उसमें लिखा था कि “आपने इस महीने की तेरहवीं तारीख का पत्र देखा होगा, उसमें कुछ वृत्तान्त आपका भी लिखा गया है. इस समय के लोगों को खुशामद बहुत प्यारी है और खुशामदी चैन करते हैं परन्तु मेरा यह काम नहीं. मैंने जो कुछ लिखा वह सच-सच लिखा है, आप से बुद्धिमान, योग्य, सच्चे,अभिज्ञ, उदार और देशहितैषी हिन्दुस्तान में बहुत कम हैं. इसी से हिन्दुस्तान की उन्नति नहीं होती, विद्याभ्यास के गुण कोई नहीं जानता, अख़बारों की कद्र कोई नहीं करता, अखबार जारी करने वालों को नफ़े के बदले नुक्सान उठाना पड़ता है. हम लोग अपना दिमाग़ खपा कर देश की उन्नति के लिये आर्टिकल लिखते हैं, परन्तु अपने देश के लोग उसकी तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखते इससे जी टूटा जाता है. देखिये अख़बार के कारण मुझ पर एक हज़ार रुपये का कर्जा हो गया और आगे को छापे खाने का खर्च निकलना भी बहुत कठिन मालूम होता है. प्रथम तो अख़बार के पढ़नेवाले बहुत कम और जो हैं उनमें भी बहुधा कोरस्पोन्डेन्ट बनकर बिना दाम दिये पत्र लिया चाहते हैं और जो गाहक बनते हैं उनमें भी बहुधा दिवालिये निकल जाते हैं. छापेखाने का दो हज़ार रुपया इस समय लोगों में बाकी है परन्तु फूटी कौड़ी पटने का भरोसा नहीं. कोई आप-सा साहसी पुरुष देश का हित विचार कर इस डूबती