“जी नहीं हुजूर! ऐसी क्या जल्दी थी” मुन्शी चुन्नीलाल नोट जेब में रखकर बोले.
"यह भी अच्छी विद्या है” पंडितजी ने भरमा भरमी सुनाई.
“मैं जानता हूंँ कि प्रथम तो हरकिशोर नालिश ही नहीं करेंगे और की भी तो दमभर में खारिज करा दी जायगी” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.
निदान लाला मदनमोहन बहुत देर तक इस प्रकार की बातों में अपनी छाती का बोझ हल्का करके भोजन करने गए और गुपचुप बैजनाथ को बुलाने के लिये एक आदमी भेज दिया.
अपने अपने लाभकों बोलतबैन बनाय
वेस्या बरस घटवहीं, जोगी बरस बढ़ाय.
वृंद.
लाला मदनमोहन भोजन करके आए उस समय डाक के चपरासी ने लाकर चिट्ठियां दीं.
उनमें एक पोस्टकार्ड महरौली से मिस्टर बेली ने भेजा था। उस्में लिखा था कि "मेरा विचार कल शाम को दिल्ली आने का है. आप मेहरबानी कर के मेरे वास्ते डाक का बंदोबस्त कर दें और लौटती डाक में मुझको लिख भेजें” लाला मदनमोहन ने तत्काल उसका प्रबंध कर दिया.