+ जिस समय, भौगोलिक खोजों के युग के बाद पूजीवादी उत्पादन, और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते पाये रीति-रिवाजों तथा ऐतिहासिक अधिकारों विधिवेत्ता एच० एस० मेन को लगा कि मानो उन्होने बड़ा भारी मावि- पूरी प्रगति इस बात में निहित है कि अब हम हैसियत की जगह करार को-बाप-दादों से विरासत में मिली स्थिति की जगह स्वेच्छापूर्वक रिच व्यक्तित्व, अपनी प्रिया-शक्ति और सम्पत्ति का स्वतंत्रतापूर्वक जिस प्रकार पाहे उग प्रकार उपयोग कर मके, मोर गाय ही जो समानता के माधार " लोगों को प्रस्तुत परत निश्चय अधिकाधिक इस ढंग से होता है कि न केवल स्त्री का, बल्कि पुरुष का भी, उसके व्यक्तिगत गुणो के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी सम्पत्ति के आधार पर मूल्याकन किया जाता है। शुरू से ही शासक वर्गों का ऐसा व्यवहार रहा है कि उनमे यह बात कभी सुनी तक नही जा सकती थी कि विवाह के मामले मे दोनो प्रमुख पक्षों को पारस्परिक इच्छा या प्रवृत्ति का निर्णायक महत्त्व हो सकता है। ऐसी बाते तो ज्यादा से ज्यादा किस्ने- कहानियो मे होती थी, या फिर वे होती थी उत्पीडित वर्गों मे, जिनश कोई महत्त्व न था। विश्व-व्यापार तथा मैनुफेक्चर के जरिये दुनिया को जीतने निकला था, उस समय यही परिस्थिति थी। हर आदमी यही सोचेगा कि विवाह का यह रूप पूंजीवादी उत्पादन के सर्वथा उपयुक्त था, और वास्तव में वान भी ऐसी ही थी। परन्तु , विश्व-इतिहास का व्यंग्य देखिये - उसकी गहराई तक कौन पहुंच सकता है-विवाह के इस रूप मे सबसे बड़ी दरार पूजीवादी उत्पादन ने ही डाली। सभी वस्तुग्रो को बाजार में विकनेवाले मालो में बदलकर उसने सारे प्राचीन एवं परम्परागत सम्बन्धो को भंग कर दिया। की जगह क्रय-विक्रय और " स्वतंत्र " करार की स्थापना की। और मंग्रेज प्कार किया है, जब उन्होंने यह कहा कि पिछले युगो की तुलना में हमारी करार के द्वारा स्थापित स्थिति को, मानने लगे है। यह यात, वह सही है, बहुत दिन पहले ही 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कह दी गयी थी। परन्तु करार करने के लिये जरूरी है कि ऐसे लोग हो जो अपने 1 जहा ता 00 'ममान पर मिले। टीक ऐमे ही "स्वतंत्र" मोर पूजीवादी उत्पादन का एक मुख्य काम पा। यद्यपि शुरू में यह यान पर घेतन ढंग में, पौर यह भी धार्मिक वेप में हुई, फिर भी कात्या के मुशारी के समय में ही यह मा निशान यन गया रिपो- सूपर मोर १००
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