पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/८७

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. ग्राता है- पति जमकर हेटैरिफ्म करता है और पत्नी जमकर व्यभिचार करती है। कैथोलिक चर्च ने निस्संदेह तलाक की प्रथा को केवल इसलिये ख़तम कर दिया कि उसे विश्वास हो गया था कि जैसे मृत्यु का दुनिया में कोई इलाज नहीं है, वैसे ही व्यभिचार का भी नही है। दूसरी ओर, प्रोटेस्टेंट देशों में यह नियम है कि पूजीवादी पुत्र को अपने वर्ग में से, कमोवेश आजादी के माथ , खुद अपने लिये पत्नी तलाश कर लेने की इजाजत रहती है। अतएव , इन देशो मे विवाह का आधार कुछ हद तक थोड़ा-बहुत प्रेम हो सकता है , गो प्रेम हो या न हो, प्रोटेस्टेंटो के बगुलाभगती लोकाचार में माना यही जाता है कि पति-पली मे प्रेम है। यहा पुरुष उतने सक्रिय रूप से गणिका-गमन नही करते, और स्त्री का परपुरुष से प्रेम करना भी उतना प्रचलित नहीं है। विवाह का चाहे जो भी रूप हो, पर चूकि वह किसी की प्रकृति नहीं बदल देता, और चूकि प्रोटेस्टेंट देशों के नागरिक अधिकतर कूपमंडूक होते हैं, इसलिये यदि हम सबसे अच्छे उदाहरणो का औसत निकालें, तो यह पायेंगे कि इस प्रोटेस्टेंट एकनिष्ठ विवाह में पति- पत्नी ऊबा हुमा निरानन्द जीवन , जिसे गृहस्थ-जीवन का परमानन्द कहकर पुकारते हैं, बिताते हैं। विवाह के इन दो रूपों को सबसे अच्छी झलक उपन्यासों में मिलती है - कैथोलिक विवाह को समझना हो, तो फ्रांसीसी उपन्यास पढिए और प्रोटेस्टेंट विवाह का असली स्वरूप देखना हो, तो जर्मन उपन्यास पढ़िए। दोनों में पुरुप को “प्राप्ति हो जाती है"। जर्मन उपन्यास में युवक को लडकी प्राप्त होती है, फ़ासीसी उपन्यास मे पति को जारिणी- पति का पद प्राप्त होता है। दोनो में से किसका हाल ज्यादा बुरा है। यह कहना हमेशा आसान नहीं होता। जर्मन उपन्यास की नीरसता फ्रांसीसी नागरिक को उतनी ही भयावनी लगती है, जितनी कि जर्मन कूपमंडूक को फासीसी उपन्यास की "अनैतिकता"। हा, हाल मे, जब से "बर्लिन भी एक महानगर बन रहा है, तब से हैटेरिज्म और व्यभिचार के बारे में, जो बरसों से जर्मनी मे होते आये हैं , जर्मन उपन्यास पहले से कुछ कम भीरता के साथ वर्णन करने लगे हैं। परन्तु इन दोनों प्रकार के विवाहो में वर और वधू की वर्ग-स्थिति से ही विवाह का निश्चय होता है और इस हद तक वह सुविधा की चीज ही रहता है। और दोनों ही सूरतों में सुविधा के विवाह की यह प्रथा अक्सर घोर वेश्या-प्रथा मे वदल जाती है। कभी-कभी दोनों ही पक्ष इस 72 ८६