भारत के मन्दिरो की देवदासियां जिन्हें Bayader भी कहते है ( यह पुर्तगाली भाषा के bailadeira शब्द का विगड़ा हुमा १ है, जिसका अर्थ नर्तकी है) इतिहास की पहली वेश्यायें थी। यह अनुष्ठानात्मक आत्मसमर्पण पहले सभी स्त्रियों के लिए अनिवार्य था। वाद में मन्दिरो की ये पुजारिने ही, सभी स्त्रियों की तरफ से , आत्मसमर्पण करने लगी। दूसरी जातियो मे हैटेरिज्म विवाह के पहले लडकियों को दी गयी यौन-स्वतंत्रता से उत्पन्न होता है। इस प्रकार वह भी यथ-विवाह का ही एक अवशेष है, बस अन्तर इतना है कि वह एक भिन्न मार्ग से हमारे पास तक आया है। सम्पत्ति को लेकर समाज में भेदो के उत्पन्न होने के साथ-साथ - यानी बर्बर युग की उन्नत अवस्था में ही-दास-श्रम के साथ- साथ कही-कही मजूरी पर किया जानेवाला श्रम भी दिखायी देने लगा था। और इससे अनिवार्यतः सह-सम्बद्ध रूप मे, दासियो के समर्पण के साथ- साथ , जिसमे उनकी मर्जी का सवाल न था, कही-कही स्वतंत्र नारियो द्वारा वेश्यावृत्ति भी दिखायी देने लगी। अतएव , जिस प्रकार सभ्यता से उत्पन्न प्रत्येक वस्तु दोमुही, दोरखी , अन्तर्विरोधी और स्वयं अपने अन्दर मुखालिफ तत्त्वो को लेकर चलनेवाली वस्तु होती है, उसी प्रकार यूथ-विवाह से सभ्यता को मिली विरासत के भी दो पहलू है : एक ओर एकनिष्ठ विवाह , दूसरी ओर हैटेरिज्म , और उसका चरम रूप - वेश्यावृत्ति। अन्य सभी सामाजिक प्रथाओं की तरह हैटेरिएम भी एक विशिष्ट सामाजिक प्रथा है। वह पुरानी यौन-स्वतंत्रता का हो एक सिलसिला है, लेकिन पुरुषो के लिए ही। हालाकि असल मे इस रूप को सहन ही नही किया जाता, बल्कि उसका विशेषकर शासक वर्गों द्वारा बड़े शौक और मजे से इस्तेमाल किया जाता है, ताहम शब्दो मे सदा उसकी निन्दा ही की जाती है। दरअसल इस निन्दा से, इस प्रथा का व्यवहार करनेवाले पुरुषो को कोई नुकसान नही होता है। उससे तो केवल नारियो को चोट पहुंचती है। वे समाज से बहिष्कृत को जाती है ताकि एक बार फिर समाज के बुनियादी नियम के रूप मे नारी पर पुरप के पूर्ण प्रभुत्व की घोषणा की जाये। लेकिन इससे स्वयं एकनिष्ठ विवाह के भीतर एक दूमरा अन्तर्विरोध पैदा हो जाता है। हैटेरिज्म की प्रथा द्वारा जिसका जीवन सुरभित है। उस पति के साथ-साथ उपेक्षित पली होती है। जिस प्रकार प्राधा सेव पाने के याद पूरा सेव हाथ में रखना असम्भव है, उसी प्रकार विरोध
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