प्रथा के बारे में कुछ और शब्द कहना चाहेगे। यदि ये दोनों प्रथाए किसी देश में साथ-साय नहीं मिलती-और सर्वविदित है कि वे माथ-साथ नहीं मिलती है-तो जाहिर है कि विवाह के ये रूप केवल अपवाद के रूप में हो, इतिहास की वितास-वस्तुप्रो के रूप में ही, पाये गये है। सामाजिक सस्थाये जो भी रही हो, पुरुषो और स्त्रियो की संख्या अभी तक, मोटे तौर पर, सदा बरावर रही है। और चूंकि यह सम्भव नहीं है कि बहु- पली प्रथा में अकेले वच गये पुरुष बहु-पति प्रथा मे अकेली वच गयी स्त्रियो से सतोप कर ले, इसलिये जाहिर है कि इन दोनो प्रथानों में से कोई भी, समाज मे ग्राम तौर पर प्रचलित नहीं हो सकती थी। वास्तव में तो पुरुषों द्वारा कई-कई पत्नियो को रखने की प्रथा स्पष्टत: दास-प्रथा से उत्पन्न हुई थी और केवल अपवादस्वरूप ही पायी जाती थी। सामी लोगों के पितृसत्तात्मक परिवार में, केवल कुलपति या अधिक से अधिक उसके दो- एक पुत्री के पास , एक से अधिक पत्नियां होती थी; परिवार के अन्य सदस्यो को एक-एक पत्नी से ही संतोष करना पड़ता था। समूचे पूरब में प्राज भी यही हालत है। बहु-पत्नी विवाह केवल धनिकों तथा अभिजात लोगो का विशेषाधिकार है, और ये पत्निया मुख्यतः दासियों के रूप में खरीदी जाती है। माम लोगो के पास एक-एक पत्नी होती है। इसी प्रकार भारत और तिब्बत मे बहु-पति प्रथा अपवादस्वरूप ही मिलती है, जिसकी यूथ- विवाह से उत्पत्ति मिद्ध करने के लिये, जो सचमुच बड़ी दिलचस्प चीज होगी, अभी और निकट से खोज करने की आवश्यकता है। इसमे शक नही कि व्यवहार में यह प्रथा मुसलमानों के हरमो की प्रथा से , जहां ईर्मा का राज रहता है, अधिक सह्य है। कम से कम भारत के नायर लोगो में तो निश्चय ही तीन-तीन, चार-चार, या उससे भी अधिक संख्या में पुरपो के पास केवल एक पली होती है, परन्तु उनमे प्रत्येक पुरप को अधिकार होता है कि चाहे तो तीन या चार अन्य पुरुषों के साथ एक दूमरी पत्नी रखे, और इसी प्रकार तीसरी या चौथो पली रये। पाश्चर्य की बात है कि मैक- लेनन ने इन विवाह-क्लबो को, जिनमे से पुरुष कई का एकसाथ सदस्य बन सकता था और जिनका मैक-सेनन ने खुद वर्णन किया है, विवाह का एक नया रूप-क्लव-विवाह - नहीं समझा । परन्तु क्लव-विवाह की यह प्रया वास्तविक बहु-पति प्रथा नहीं है, बल्कि इसके विपरीत, जैमा कि जिरो. स्यूलो ने लक्ष्य किया है, मह मूध-विवाह का एक विशेष (spezialisierte
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