- हिसाव इसी परिपद् के सामने रखता है। यह परिषद् ही तमाम महत्त्वपूर्ण सवालो को तय करती है, कुटुम्ब के सदस्यो के बीच न्याय करती है, और महत्त्वपूर्ण वस्तुओ, विशेषकर जमीन-जायदाद की खरीद-विक्री आदि का निर्णय करती है। करीब दस बरस पहले की ही बात है जब रूस मे भी ऐसे बड़े-बड़े कुटुम्ब-समदायों के अस्तित्व का प्रमाण मिला था। और अब तो यह बात आम तौर पर मानी जाती है कि रूस की लोक-परम्परा मे इन समुदायो की जड़ें भी उतनी ही गहरी जमी हुई है जितनी obskina अथवा ग्राम- समुदाय की। रूसियों की सबसे प्राचीन विधि-संहिता में - यारोस्लाव के 'प्राब्दा' मे 63 -- इन समुदायो का उसी नाम (vervj) से जिक्र आता है, जिस नाम से डाल्मेशियन कानूनो मे आता है। और पोल तथा चेक लोगो की ऐतिहासिक दस्तावेज़ो मे भी उनकी चर्चा मिलती है। ह्य जलर के मतानुसार ('जर्मन अधिकार-प्रथाए' 54) जर्मन लोगो मे भी आर्थिक इकाई शुरू मे आधुनिक ढंग का व्यक्तिगत परिवार नही थी, बल्कि कुटुम्व-समुदाय (Hausgenossenschaft) थी, जिसमे कई पीढिया या कई वैयक्तिक परिवार, और अक्सर बहुत-से अधीन लोग भी शामिल होते थे। रोमन परिवार के इतिहास को देखने से उसका भी पूर्व रूप यही कुटुम्ब-समुदाय ठहरता है, और इसके परिणामस्वरूप अभी हाल में रोमन परिवार मे घर के मुखिया की निरंकुश सत्ता और परिवार के वाकी सदस्यो की मुखिया की तुलना में अधिकारहीन स्थिति के विषय में प्रबल शंका प्रगट की गयी है। यह माना जाता है कि इस प्रकार के कुटुम्बा समुदाय आयरलैंड के केल्ट लोगो मे भी रहे है। फ्रास के निवेनाई प्रदेश में वे parconneries के नाम से , फ्रांसीसी क्राति के समय तक मौजूद थे, और फ्रांश-कोम्ते में तो वे अाज भी नहीं मिटे है। लूहां (साप्रोन तथा ल्वार) के इलाके में अब भी ऐसे अनेक बड़े-बड़े किसान घर देखने को मितेंगे जिनके बीचों-बीच एक ऊंची छत का सामुदायिक हॉल होता है और उसके चारों ओर सोने के कमरे होते है जिनमे जाने के लिये छ:- आठ सीढ़ियो के जीने बने होते है और जिनमें एक ही परिवार की कई पीढिया निवास करती है। भारत में सामूहिक ढंग से खेती करनेवाले कुटुम्ब-समुदाय के अस्तित्व के बारे में नियास ने सिकन्दर महान् के समय मे ही जिक्र किया था ....
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