ब्रूमेर', 'फ्रांस में गृह-युद्ध' और स्वयं एंगेल्स की 'ड्यूहरिंग मत-खंडन' जैसी क्लासिक रचनाओं की श्रेणी में आती है।
इस पुस्तक में एंगेल्स ने उन विद्वानों का विरोध किया है, जो राज्य को एक ऐसी वर्गोपरि शक्ति के रूप में चित्रित करते हैं, जिसका उद्देश्य सभी नागरिकों के हितों की समान रूप से रक्षा करना है। प्राचीन एथेंस, प्राचीन रोम और जर्मनी में राज्य के उदय का उदाहरण देते हुए वह स्पष्टतः और विश्वासोत्पादक ढंग से दिखाते हैं कि राज्य अपने उदय के काल से ही सदैव उन वर्गों के प्रभुत्व का साधन रहा है, जो उत्पादन के साधनों के स्वामी हैं। एंगेल्स राज्य के विभिन्न ठोस रूपों का, विशेषतः पूंजीवादी-जनवादी गणराज्य का, जिसे पूंजीवाद के हिमायती जनवाद का सर्वोच्च रूप कहते है, विश्लेषण करते है। एंगेल्स इस गणराज्य के वर्गीय सार को बेनकाब करते हुए दिखाते है कि इसके जनवादी मुखौटे के पीछे पूंजीवादी वर्ग का प्रभुत्व ही छिपा हुआ है।
संसदीय भ्रमो के विरुद्ध चेताते हुए, जिनका शिकार तब तक मजदूर आन्दोलन के अनेक नेता और विशेषतः जर्मन सामाजिक-जनवाद में व्याप्त अवसरवादी तत्त्व बन चुके थे, एंगेल्स बताते है कि जब तक पूंजी की सत्ता विद्यमान है, तब तक किसी भी प्रकार की जनवादी स्वतंत्रताएं अपने आप ही मेहनतकशों को मुक्ति नहीं दिला सकती। साथ ही वह जनवादी स्वतंत्रताओं को बनाये रखने और बढ़ाने में सर्वहारा की रुचि पर भी जोर देते हैं, जो समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन के हेतु उसके मुक्ति संघर्ष के विकास के लिए अधिकतम अनुकूल परिस्थितिया तैयार करती है।
इन प्रश्नो की जांच करते हुए कि कैसे उत्पादक शक्तियों के विकास के साथ-साथ भौतिक संपदाओं के उत्पादन की पद्धति भी बदलती जाती है और कैसे एक चरण विशेष में निजी स्वामित्व का उदय तथा समाज का विरोधी वर्गों में विभाजन अनिवार्य तथा नियमसंगत बन जाते है, एंगेल्स अपनी पुस्तक मे मार्क्सवाद के प्रणेताओं के इस निष्कर्ष का और विस्तार से प्रतिपादन करते हैं कि पूजीवादी समाज मे उत्पादक शक्तियों का आगे विकास भी निजी संपत्ति तथा शोषक वर्गों के अस्तित्व को अनिवार्यतः उत्पादन के विकास में बाधक बना देगा। यत् सर्वहारा क्रांति को अवश्यंभावी बनायेगा, जिसे, जैसा कि मार्स और एंगेल्स ने अनेक बार पाया था, पूंजीवादी वर्ग के पुराने शोषणामान