. महत्त्वपूर्ण होता गया, और दूसरी ओर पुरुष के मन में यह इच्छा जोर पकड़ती गयी कि अपनी पहले से मजबूत स्थिति का फायदा उठाकर उत्तराधिकार को पुरानी प्रया को उलट दिया जाये, ताकि उसके अपने वच्चे हकदार हो सके। परन्तु जब तक मातृ-सत्ता के अनुसार वंश चल रहा था, तब तक ऐसा करना असम्भव था। इसलिये आवश्यक था कि मातृ- सत्ता को उल्टा जाये, और यही किया गया। और यह करने में उतनी कठिनाई नहीं हुई जितनी आज मालूम पड़ती है। कारण कि यह क्रान्ति , जो मानवजाति द्वारा अब तक अनुभूत सबसे निर्णायक क्रांतियों में थी, गोन के एक भी जीवित सदस्य के जीवन मे किसी तरह का खलल डाले विना सम्पन्न हो सकती थी। सभी सदस्य जैसे पहले थे, वैसे ही अव भी रह सकते थे। वस यह एक सीधा-सादा फ़ैसला काफी था कि भविष्य में मोन के पुरुप सदस्यों के वंशज गोत्र में रहेंगे और स्त्रियों के वंशज गोल से अलग किये जायेंगे, और उनके पिताओं के गोत्रों में शामिल कर दिये जायेंगे। इस प्रकार मातृक वंशानुक्रम तथा मातृक दायाधिकार की प्रथा उलट दी गयी और उसके स्थान पर पैतृक वंशानुक्रम तथा पैतृक दायाधिकार स्थापित हुआ। यह क्रांति सभ्य जातियो में कब और कैसे हुई, इसके बारे में हम कुछ नहीं जानते। यह पूर्णतः प्रागैतिहासिक काल की बात है। पर यह क्राति वास्तव में हुई थी, यह इस बात से एकदम सिद्ध हो जाता है कि मातृ-सता के जगह-जगह अनेक अवशेष मिले है, जिन्हें ख़ास तौर पर बाखोफ़ेन ने जमा किया है। यह क्राति कितनी आसानी से हो जाती है, यह इस बात से प्रकट होता है कि अनेक इडियन कबीलों में यह परिवर्तन अभी हाल में हुआ है और अब भी हो रहा है। यहा यह क्रांति कुछ हद तक बढती हुई दौलत और जीवन को परिवर्तित प्रणालियों (जंगलों से वृक्षविहीन घास के मैदानो मे स्थानान्तरण ) के प्रभाव के कारण और कुछ हद तक सभ्यता तथा मिशनरियों के नैतिक प्रभाव के कारण हुई है। मिसौरी के पाठ कबीलों में से छः मे पैतृक और दो में अब भी मातृक वंशानुक्रम तथा मातृक दायाधिकार कायम है। शोनी, मियामी और डेलावेयर कबीलों मे यह रीति बन गयी है कि बच्चों को पिता के गोत्र के नामों में से कोई एक नाम देकर उस गोत्र में शामिल कर दिया जाता है, ताकि वे अपने पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी बन सकें। "मनुष्य को अन्तर्जात वाक्छल प्रवृत्ति, जिसके द्वारा वह वस्तुग्रो के नाम बदलकर स्वयं उन वस्तुओं को
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