" देकर या विना मजूरी के, उनकी मर्जी के खिलाफ काम लेंगे। (जुगेनहाइम की पुस्तक 'भूदाम-प्रथा', पीटर्मवर्ग, १८६१, के मूल कैटेलोनियन सस्करण में उद्धृत , पृष्ठ ३५।") वाखोफेन का यह तर्क भी विलकुल सही है कि जिस अवस्था को उन्होने "हैटेरिम" अथवा Sumpizeugung का नाम दिया है, उससे एकनिष्ठ विवाह में संक्रमण मुख्यतः नारी के ही हाथो सम्पन्न हुआ था। जीवन की आर्थिक परिस्थितियों के विकास के फलस्वरूप, अर्थात् आदिम सामुदायिक व्यवस्था के ध्वस के साथ-साथ तथा आवादी के अधिकाधिक धनी होते जाने के साथ-साथ, पुराने परम्परागत यौन सम्बन्धों का भोलेपन से भरा हुआ आदिम, अकृत्रिम , वन्य स्वरूप जितना ही नष्ट होता गया, उतना ही ये सम्वन्ध नारियो को अपमानजनक और उत्पीड़क प्रतीत हुए होंगे, और इस अवस्था से निप्कृति के रूप मे सतीत्व के, एक पुरुष से ही अस्थायी अथवा स्थायी विवाह के अधिकार के लिये उतनी ही उनकी आकांक्षा बढ़ी होगी। पुरुषों की ओर से यह परिवर्तन कभी नही आ सकता था- और कुछ नही तो केवल इसलिये कि पुरुपों ने आज तक कभी भी वास्तविक यूध-विवाह के मज़ों को व्यवहार मे त्यागने की बात सपने मे भी नहीं सोची है। स्त्रियो द्वारा युग्म-विवाह की प्रथा मे संक्रमण सम्पन्न किये जाने के बाद ही पुरुष कड़ाई से एकनिष्ठ विवाह लागू कर सके -पर जाहिर है कि यह बंधन भी उन्होने केवल स्त्रियों पर ही तगाया। युग्म-परिवार ने जागल युग तथा बर्बर युग के सीमात पर जन्म लिया था। वह मुख्यतः जांगल युग की उन्नत अवस्था मे , और कही-कही बर्बर युग की निम्न अवस्था में ही कही जाकर, उत्पन्न हुआ था। जिस प्रकार यूथ-विवाह जागल युग को विशेषता है और एकनिष्ठ विवाह सभ्यता के युग की, इसी प्रकार परिवार का यह रूप-युग्म-विवाह --बर्बर युग की विशेषता है। उसके विकसित होकर स्थायी एकनिष्ठ विवाह में बदल जाने के लिये आवश्यक था कि अभी तक हमने जिन कारणों को काम करते देखा है, उनसे कुछ भिन्न कारण मैदान में प्रायें। युग्म-परिवार मे यूथ घटते-घटते अपनी अन्तिम इकाई में बदल गया था और नारी तथा पुरुष इन दो परमाणुओ से बना एक अणु रह गया था। नैसर्गिक वरण ने सामूहिक विवाह के दायरे को घटाते-घटाते अपना काम पूरा कर दिया था ; इस दिशा में उसे और कुछ करना बाकी न था। अब यदि कोई.. ६७
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