बूढे लोग, मुखिया और अोझा-पुरोहित आदि, सामूहिक पत्नियो को प्रया को अपने मतलव के लिये इस्तेमाल करते है, और अधिकतर स्त्रियों पर अपना एकाधिकार कायम कर लेते है। परन्तु इन लोगों को भी कुछ विशेष उत्सव या बड़े मेलों के समय पुराने सामूहिक अधिकार की पुनःस्थापना की और अपनी पत्नियो को नौजवानो के साथ मौज करने की इजाजत देनी पडती है। वेस्टरमार्क ने (अपनी पुस्तक के पृष्ठ २५-२६ पर) समय-समय पर होनेवाले ऐसे Saturnalia महोत्सवो 1 के अनेक उदाहरण दिये है, जिनमें प्राचीन काल के स्वच्छन्द मैथुन को थोड़े समय के लिये फिर स्वतंत्रता हो जाती थी। मिसाल के लिये , उन्होने बताया है कि ऐसे उत्सव भारत के भी हो, सथाल , पजा और कोतार कबीलों में और अफ्रीका की कुछ जातियों मे भी होते हैं इत्यादि । अजीव वात यह है कि वेस्टरमाकं इन उत्सवो को यूथ-विवाही का नही- वेस्टरमार्क यूथ-विवाह को नहीं मानते - बल्कि उस मथुन-ऋतु का अवशेप मानते है जो आदिम मानव तथा अन्य पशुओ, दोनों के लिये समान है। अब हम वाखोफेन की चौथी बड़ी खोज पर आते है। हमारा मतलब यूथ-विवाह से युग्म-विवाह में संक्रमण के व्यापक रूप से प्रचलित रूप से है। जिस चीज़ को बाखोफेन ने देवताग्रो के प्राचीन आदेशो का उल्लंघन करने के अपराध का प्रायश्चित समझा-जिसके द्वारा स्त्री सतीत्व के अधिकार का मूल्य चुकाती है, वह वास्तव में उस प्रायश्चित्त के रहस्यवादी स्वरूप से अधिक कुछ नहीं है, जिसकी कीमत देकर नारी बहुत-से पतियों को एकसाथ परनी होने के प्राचीन नियम से मुक्ति प्राप्त करती है, और अपने को केवल एक पुरुष को देने का अधिकार पाती है। यह प्रायश्चित्त मीमित मात्मसमर्पण के रूप में होता है। विलोनिया को स्त्रियों को माल में एक बार मिलिटा के मंदिर में जाकर पुरषों से प्रात्मसमर्पण करना पड़ता था। मध्य पूर्व की दूसरी जातियों के लोग अपनी लडकियो को कई साल के लिए मनाइतिस के मंदिर में भेज देते थे, जहा उन्हे अपनी पसन्द के पुरषो के साथ स्वच्छन्द प्रणय-व्यापार करना पड़ता था और उसके बाद ही उन्हें विवाह करने की इजाजत मिनती थी। भूमध्य सागर और गंगा नदी के भीष के इला में रहनेवाली लगभग सभी एशियाई जातियो में धार्मिर पावरण में ढंके इसी प्रकार के रीति-रिवाज पाये जाते है। मुक्ति पाने के उद्देश्य में किया गया प्रायश्चित स्वरूप यह यलिदान कालांतर में धीरे-धीरे मम पटिन होना जाता है, जंगा कि यायोफेन ने कहा है:
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