और कुछ शुरू होता है -ये बातें कही अधिक गम्भीर परिवर्तन के प्रासार मात्र है, जो बहुत व्यापक रूप मे दिखायी पड़ती है, पर इससे अधिक उनका महत्त्व नहीं है। परन्तु उस पडिताऊ स्काटलैंडवासी मैक-लेनन ने, इन आसार को, स्त्रियों को प्राप्त करने के इन तरीको को ही, परिवार के अलग-अलग तरह के रूप बना डाला और कहा कि कुछ "अपहरण-विवाह" होते है 'क्रय-विवाह"। इसके अलावा, अमरीकी इंडियनो मे और (विकास की इसी मजिल के) कुछ अन्य कबीलों में भी विवाह का प्रबंध उन दो व्यक्तियो के हाथ में नहीं होता जिनकी शादी होती है, बल्कि उनकी तो बहुधा राय तक नही पूछी जाती। विवाह का प्रबंध दोनो व्यक्तियो की माताओं के हाथ में रहता है। इस प्रकार अक्सर दो विलकुल अजनबी व्यक्तियो की सगाई कर दी जाती है, और उन्हें इस सौदे का ज्ञान केवल विवाह का दिन नज़दीक आने पर ही होता है। विवाह के पहले, वधू के गोत्रीय सम्बन्धियो को (यानी उसकी माता की तरफ के सम्बन्धियो को, उसके पिता को या पिता के रिश्तेदारों को नहीं), वर तरह-तरह की वस्तुएं भेंट मे देता है। ये वस्तुए कन्या-दान के प्रतिदान स्वरूप होती है । पति या पत्नी कभी भी अपनी इच्छा से विवाह भग कर सकते हैं। फिर भी बहुत से कबीलो मे, उदाहरण के लिये इरोक्वा कबीले में, लोक-भावना ऐसे सम्बन्ध विच्छेद के धीरे-धीरे खिलाफ़ होती गयी। जब कोई झगडा खड़ा होता है, तो दोनों पक्षो के गोत-सम्बन्धी वीच-बिचाव करने और फिर से मेल करा देने की कोशिश करते हैं, और इन कोशिशों के बेकार हो जाने पर ही सम्बन्ध-विच्छेद हो पाता है। ऐसा होने पर, बच्चे मा के साथ रहते है और दोनों पक्षो को फिर विवाह करने की आजादी होती है। युग्म-परिवार स्वय बहुत कमजोर और अस्थायी होता था, और इसलिये उसके कारण अलग कुटुम्ब की कोई विशेष आवश्यकता नहीं पैदा हुई थी, और न ही वह वांछनीय समझा गया। अतएव पहले से चला पाता हुमा सामुदायिक कुटुम्ब युग्म-परिवार के कारण टूटा नही। किन्तु सामुदायिक कुटुम्ब का मतलब यह है कि घर के भीतर नारी को सत्ता सर्वोच्च होती है, उसी प्रकार जैसे सगे पिता का निश्चयपूर्वक पता लगाना असम्भव होने के कारण, सगी मां को एकान्तिक मान्यता का अर्थ है स्त्रियो का, अर्थात् मातामो का प्रबल सम्मान । समाज के आदिकाल में नारी पुरप की दासी थी, यह उन बिलकुल बेतुको धारणामों में से एक है जो हमे
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