- जाते हैं। "माता-पिता सन्तानो के साथ रहते थे," यह कथन शायद सीजर की गलतफहमी का परिणाम है। हा, इस व्यवस्था में यह असम्भव नहीं है कि पिता और पुत्र या माता और पुत्री एक ही विवाह-यूथ में हो, गोकि वाप और बेटी, या मा और बेटे उसमे नहीं रह सकते थे। इसी प्रकार हेरोडोटस और अन्य प्राचीन लेखकों ने जांगल तथा बर्बर लोगो में सामूहिक पत्नियो का जो वर्णन किया है, वह भी परिवार के इसी या इससे मिलते-जुलते यूथ-विवाह के रूप के आधार पर ही सरलता से समझ मे आता है। वाटसन और के ने अपनी पुस्तक The People of India में अवध मे( गगा के उत्तर मे) रहनेवाले ठाकुरो का जो वर्णन दिया है, उस पर भी यही बात लागू होती है। उन्होने इन लोगो के बारे में लिखा है: "वे बड़े-बडे समुदायो में ( यौन सम्बन्धो को दृष्टि से ) विना किसी भेदभाव के साथ रहते थे और जव दो व्यक्ति विवाहित माने आते थे, उनका विवाह-सम्बन्ध नाममात्र के लिये ही होता था।" अधिकतर स्थानो में मालूम होता है कि गोत्र सीधे पुनालुयान परिवार से उत्पन्न हुए। हां, वैसे आस्ट्रेलिया की वर्ग-व्यवस्था से भी इसकी शुरूआत हो सकती थी। आस्ट्रेलियावासियों मे गोत्र तो होते है, पर उनमे पुनालुमान परिवार नहीं होता, उनमे यूथ-विवाह का एक अधिक कुघड़ रूप पाया जाता है। यूथ-विवाह के सभी रूपो में, इस बात का निश्चय नही होता कि बच्चे का पिता कौन है। पर इसका निश्चय होता है कि बच्चे की माता कौन है। यद्यपि मां इस कुल परिवार के सभी बच्चो को अपनी सन्तान कहती है, और उन सभी के प्रति उसे माता के कर्तव्य का पालन करना पडता है, तथापि वह यह तो जानती ही है कि उसकी सगी सन्तान कौनसी है। अतएव यह स्पष्ट हो जाता है कि जहां कही यूध-विवाह का चलन होता है, वहा केवल मां के वंशजो का ही पता चल सकता है, और मां ही के नाम से वंश चलता है। सभी जागल लोगों में तथा वर्वर युग की निम्न अवस्था में पाये जानेवाले लोगों में, वास्तव में यही बात देखी जाती है और बाखोफेन को दूसरी बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने सबसे पहले इसका पता लगाया था। केवल माता के द्वारा वंश का पता लगने तथा इससे कालान्तर में उत्पन्न होनेवाले उत्तराधिकार-सम्बन्धों को बाखोफेन
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