उद्धृत किया है, कहते हैं कि वे एकनिष्ठ ही होते हैं। हाल में प्रकाशित 'मानव-विवाह का इतिहास' (लंदन, १८९१)मैं वेस्टरमार्क ने जो यह दावा किया है कि पुरुपाभ वानरों में एकनिष्ठ यौन-जीवन की प्रवृत्ति पायी जाती है , उसको भी कोई बहुत बड़ा सवत नही माना जा सकता। संक्षेप में, ये सारी रिपोर्ट इस प्रकार की है कि ईमानदार लेतूनों को स्वीकार करना पड़ता है कि "स्तनधारी पशुओ में बौद्धिक विकास के स्तर तथा यौन सम्बन्ध के रूप में कोई निश्चित सम्बन्ध नहीं पाया जाता। और एस्पिनास ने ('पशु-समाज', १८७७) तो साफ़-साफ़ कह डाला है कि "पशुओं में दिखायी पड़नेवाला मर्वोच्च मामाजिक रूप यूथ होता है। लगता है कि यूथ परिवारो को मिलाकर बना है, पर शुरू से ही परिवार तथा यूय के बीच एक विरोध बना रहता है, वे एक दूसरे के उल्टे अनुपात में बढ़ते हैं।" 11 22 ऊपर की बातों से स्पष्ट हो जाता है कि हम पुरुपाम वानरों के परिवार तथा अन्य सामाजिक समूहों के बारे में निश्चित रूप से लगभग कुछ नहीं जानते। रिपोर्ट एक दूसरे की उल्टी है। इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। मानवजाति के जांगल कबीलो तक के बारे में भी हमे जो रिपोर्ट मिली हैं, वे भी बहुत-सी बातों मे एक दूसरे की कितनी उल्टी है, और अभी उनका आलोचनात्मक अध्ययन तथा छानबीन करने की कितनी ज़रूरत है ! फिर वानर-समाज का अध्ययन करना तो मानव-समाज से कही अधिक कठिन है। इसलिये फ़िलहाल , हमें ऐसी एकदम अविश्वसनीय रिपोर्टों से निकाले गये हर परिणाम को नामंजूर कर देना चाहिये। लेकिन, एस्पिनास की पुस्तक का जो अंश हमने ऊपर उद्धृत किया है, उससे हमे एक अच्छा सुराग मिलता है। उन्होंने कहा है कि उच्चतर पशुओं में यूय और परिवार एक दूसरे के पूरक नहीं होते, बल्कि विरोधी होते हैं। एस्पिनास ने बड़े स्पष्ट ढंग से इसका वर्णन किया है कि मैथुन- ऋतु प्राने पर नर-पशुओं की ईर्ष्या भावना किस प्रकार प्रत्येक यूथ के सामाजिक सम्बन्ध को शिथिल कर देती है, या उसे अस्थायी रूप से भंग कर देती है। - ४३
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