कुछ दिनों से यह कहना फ़ैशन हो गया है कि मानवजाति के यौन- जीवन के इतिहास में इस प्रारम्भिक अवस्था का अस्तित्व ही न था। उद्देश्य यह कि मानवजाति इस "कलंक" से बच जाये। कहा जाता है कि ऐसी अवस्था का कही कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिलता। इसके अलावा ख़ास तौर पर वाकी पशु-लोक की दुहाई दी जाती है। इसी प्रेरणावश लेतूनों ने ('विवाह और परिवार का विकास', १८८८19 ) ऐसे वहुत-से तथ्यों को जमा किया जिनसे सिद्ध होता था कि पशु-लोक में भी नीचे की अवस्या मे ही पूर्ण रूप से अनियंत्रित यौन सम्बन्ध पाये जाते है। परन्तु इन तमाम तथ्यो से मै केवल एक ही परिणाम निकाल सकता हूं। वह यह कि जहा तक मनुष्य का और उसकी आदिम जीवनावस्था का सम्बन्ध है, इन तथ्यों से कुछ भी सिद्ध नहीं होता। यदि कशेरुक पशु लम्बे समय तक युग्म- जीवन व्यतीत करते है, तो इसके पर्याप्त शरीरक्रियात्मक कारण हो सकते हैं । उदाहरण के लिए, पक्षियों में मादा को अंडे सेने के दिनों में मदद की जरूरत होती है। वैसे भी पक्षियों में दृढ़ एकनिष्ठ परिवार के उदाहरणों से मनुष्य के बारे में कुछ भी सिद्ध नहीं होता क्योंकि मनुष्य पक्षियो के वंशज नही है। और यदि एकनिष्ठ यौन सम्बन्ध को ही नैतिकता की पराकाष्ठा समझा जाये तो हमे टेपवर्म को सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए, जिसके शरीर के ५० से २०० तक देहखंडों या भागो में से प्रत्येक मे नर और मादा दोनों प्रकार का पूरा लैगिक उपकरण होता है, और जिसका पूरा जीवन , इन भागों में से प्रत्येक में, स्वयं अपने साथ सहवास करने में बीतता है। लेकिन, यदि हम केवल स्तनधारी पशुओं पर विचार करें, तो हमे उनमें हर प्रकार का यौन-जीवन मिलता है। अनियंत्रित यौन सम्बन्ध, यूय-सम्बन्ध के चिह्न, एक नर-पशु का अनेक मादा-पशुओं से यौन सम्बन्ध और एकनिष्ठ यौन-सम्बन्ध-ये सभी रूप उनमें दिखायी देते है। केवल एक रूप-एक मादा-पशु का अनेक नर पशुओं से सम्बन्ध - उसमें नहीं मिलता। इम रूप तक केवल मनुष्य ही पहुंच सके। हमारे निकटतम सम्बन्धी, चतुर्हस्ती प्राणियो मे भी, नर और मादा के सम्बन्धों में हद दर्जे की विभिन्नता पायी जाती है। और यदि हम अपने दायरे को और भी सीमित करना चाहें पौर केवल चार तरह के पुरुषाभ वानरों पर विचार करे, तो लेतूनों से हमे ज्ञात हो सकता है कि वे कभी एकनिष्ठ यौन-जीवन प्यतीत करते है तो कभी यहनिष्ठ जीवन और मोस्मुरे, जिन्हें जिरो-त्यूलों ने ४२
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