के भारत और आस्ट्रेलिया में हर जगह खूब देखने को मिलते हैं, उसका ऐतिहासिक अपेक्षित हैं। लेकिन अजीव वात यह है कि हवाई में प्रचलित रक्त-सम्बद्धता सांपार्श्विकता , समानता और असमानता के बारे में , जो विचार प्रकट होते है, उनका वास्तव मे चलन है। और इन विचारों के प्राधार पर रा. सम्बन्ध की एक पूरी विशद व्यवस्था टिकी हुई है जिसके द्वारा एक व्यक्ति के सैकडो प्रकार के भिन्न सम्बन्धो को बताया जा सकता है। इसके अलावा, यह व्यवस्था न सिर्फ सभी अमरीकी इंडियनों में पूरे तौर पर लागू पायी जाती है ( अभी तक इसका कोई अपवाद नही मिला है), बल्कि भारत के आदिवासियों में, दक्षिण भारत में रहनेवाले द्रविड़ कबीलों मे और हिन्दुस्तान मे रहनेवाले गौड़ क़वीलों में भी यही व्यवस्था लगभग ज्यो की त्यों अपरिवर्तित रूप में पायी जाती है। दक्षिण भारत के तामिल लोगो मे तथा न्यूयार्क राज्य के सेनेका कवीले के इरोक्वा लोगों में पाये जानेवाले रखत-सम्बन्धों के रूप आज भी दो सौ से अधिक भिन्न-भिन्न रिश्तो के बारे में बिलकुल एक से है। और अमरीकी इंडियनों की ही भाति , इन कबीलो में भी परिवार के प्रचलित रूप से पैदा होनेवाले सम्बन्ध रक्त- सम्वद्धता की व्यवस्था के उल्टे. है। इसका क्या कारण हो सकता है ? जांगल युग तया बर्बर युग मे सभी जातियों की समाज-व्यवस्था मे रक्त-सम्बन्धों का जो निर्णायक महत्त्व होता है, उसको देखते हुए इतनी व्यापक रूप से प्रचलित व्यवस्था के महत्त्व को केवल शब्दजाल रचकर नही उडाया जा सकता। जो व्यवस्था सामान्यतः सारे अमरीका मे फैली हुई है, जो एशिया की एक विलकुल दूसरी नस्त के लोगो मे भी पायी जाती है, और जिसके न्यूनाधिक परिवर्तित रूप अफ्रीका कारण बताना आवश्यक है। उसे इस तरह नहीं उड़ाया जा सकता जिस तरह, मिसाल के लिये, मैक-लेनन ने कोशिश की है। पिता, सन्तान, भाई और बहन कोरे औपचारिक नाम नहीं हैं, वरन् वे बिलकुल ही निश्चित प्रकार के तया अत्यन्त गम्भीर पारस्परिक कर्तव्यों के द्योतक हैं- जो अपने समग्र रूप में इन जातियो को सामाजिक रचना के हैं। और यह कारण ढढ़ लिया गया। सैंडविच द्वीप ( हवाई ) मे वर्तमान शताब्दी के पूर्वार्द्ध मे परिवार का एक ऐसा रूप मौजूद था, जिसमें ऐसे ही मा-बाप, भाई-बहन, बेटा-बेटी, चाचा-चाची, भतीजा-भतीजी होते थे जैसे कि रक्त-सम्बद्धता की अमरीकी तथा प्राचीन भारतीय व्यवस्था द्वारा मूलभूत अंग ३८
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