. . बहरहाल , इस अवस्था में नरभक्षण धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है, और अगर कही-कही बाकी भी रहता है तो केवल एक धार्मिक रीति के रूप मे, या फिर जादू-टोने के रूप में, जो इस अवस्था में करीब-करीब एक ही चीज है। ३ . उन्नत अवस्था। यह अवस्था लौह खनिज को गलाने से शुरू होती है और अक्षर लिखने की कला का आविष्कार होने तथा साहित्यिक लेखन मे उसका प्रयोग होने लगने पर सभ्यता में अंतरित हो जाती है। इस अवस्था मे, जिसे , जैसा कि हम ऊपर बता चुके है , स्वतन्त्र रूप से केवल पूर्वी गोलार्ध के लोग ही पार कर पाये, उत्पादन की जितनी उन्नति हुई, उतनी पहले की तमाम अवस्थाओं में कुल मिलाकर भी नही हुई थी। वीर काल के यूनानी, रोम की स्थापना से कुछ समय पहले के इतालवी कवीले , टेसिटस के जमाने के जर्मन, और वाइकिंगों के काल के नोमन लोग इसी अवस्था में रहते थे। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अवस्था में हम पहली बार पशुमो द्वारा खीचे जानेवाले लोहे के हल का इस्तेमाल पाते है। इसकी बदौलत बड़े पैमाने पर खेती-खेतों की जुताई --और उस समय की परिस्थितियो मे जीवन-निर्वाह के साधनों मे एक तरह से असीम वृद्धि सम्भव हो गयी। इसके साथ-साथ हम लोगो को जंगलों को काट-काटकर उन्हे खेती की तथा चरागाह की जमीनों मे बदलते हुए देखते है, और यह काम भी लोहे की कुल्हाडी और बेलचे की मदद के बिना बडे पैमाने पर नही हो सकता था। परन्तु , इस सब के साथ-साथ जनसंख्या तेजी से वढी और छोटे-छोटे इलाकों में धनी बस्तिया भाबाद हो गयी। जब तक हल से जुताई नहीं शुरू हुई थी, तब तक केवल बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में पाच लाख प्रादमी एक केन्द्रीय नेतृत्व के नीचे कभी आम होगे। वल्कि शायद ऐसा कभी नहीं हुमा होगा। होमर की कवितानो में, और विशेषकर 'इलियाड' में, हम बर्बर युग की उन्नत अवस्था को अपने विकास के चरम शिखर पर, पाते है। लोहे के बने हुए उन्नत प्रौजार, धौंकनी, हथचक्की, कुम्हार का चाक, तेल और शराब बनाना, धातुप्रो के काम का एक कला के रूप में विकास, गाड़ियों और युद्ध के रथ, तख्तों और धरनो से जहाज़ वनाना, स्थापत्य का एक कला के रूप में प्रारम्भिक विकास, मोनारों और प्राचीरों से युक्त
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