बहिर्विवाही और अन्तर्विवाही "कबीलों" के अस्तित्व के बारे में जरा भी सन्देह प्रगट करना घोर पाप समझा जाता था। इसलिये जव मोर्गन ने इन समस्त पवित्र जड़सूत्रों को एक चोट से हवा में उड़ा दिया, तो उन्हें एक प्रकार से कुफ करने का दोपी समझा जाने लगा। और फिर मौर्गन ने इस समस्या को इस तरह सुलझाया कि अपनी वात पेश करते ही पूरी चीज़ फ़ौरन स्पष्ट हो गयी। नतीजा यह हुआ कि मैक-लेनन के वे पुजारी जो अभी तक अंधो की तरह वहिर्विवाह और अन्तर्विवाह के बीच भटक रहे थे, अब अपना सिर पीटने और यह कहने को विवश होने लगे कि हम भी कैसे मूर्ख है कि इस जरा सी बात का इतने दिनों तक खुद पता न लगा सके! मौर्गन ने इतना ही अपराध नहीं किया कि अधिकृत शाखा के विद्वानी को अपने प्रति पूर्ण उपेक्षा बरतने से रोक दिया, उन्होंने सभ्यता की, माल उत्पादन करनेवाले समाज की, जो हमारे वर्तमान काल के समाज का बुनियादी रूप है. एक ऐसे अन्दाज़ मे आलोचना करके, जिससे फूरिये की याद ताजा हो जाती थी, और इतना ही नहीं, बल्कि समाज के भावी रूपान्तरण की भी कुछ ऐसे शब्दों मे चर्चा करके जिनका प्रयोग कार्ल मार्स कर सकते थे, घड़ा मुह तक भर लिया। और इसलिये उन्होंने जैसा किया वैसा भुगता! - मैक-लेनन ने रोप के साथ घोषणा की कि मौन 'ऐतिहासिक पद्धति से गहरा वैमनस्य रखते है" और प्रोफेसर जिरो- त्यूलो ने १८८४ मे भी जेनेवा में मैक-लेनन की इस राय का समर्थन किया। क्या यही वह प्रोफेसर जिरो-त्यूलो नही थे जो १८७४ में ही ('परिवार की उत्पत्ति') मैक-लेनन के बहिर्विवाह की भूलभुलैया मे भटक रहे थे, जिसमे से मौर्गन ने ही उनको निकाला? आदिम समाज के इतिहास ने मोर्गन की खोजों के परिणामस्वरूप और किन बातों में प्रगति की, यह बताना मेरे लिये यहा अावश्यक नहीं है। इस पुस्तक के दौरान यथास्थान उसकी चर्चा पाठक को मिलेगी। मौर्गन की मुख्य पुस्तक का प्रकाशन हुए अब चौदह वर्ष हो रहे है। इस दौरान आदिम मानव समाज के इतिहास के सम्बन्ध में हमारे पास और बहुत-सी सामग्री इकट्ठा हो गयी है। मानव विज्ञानियों, यात्रियों तथा पेशेवर पुरातत्त्वविदो के अलावा अब तुलनात्मक विधिशास्त्र के विद्यार्थियों ने भी इस , प्रवेश किया है और बहुत-सी नयी सामग्री और नये दृष्टिकोण हमे, २७
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