परन्तु एक बात रह गयी थी जिस पर किसी ने मैक-लेनन को चुनौती नहीं दी थी। वहिर्विवाही और अन्तर्विवाही "कबीलो" मे उन्होने जो विरोध कायम किया था और जिसके आधार पर उनकी पूरी प्रणाली टिकी हुई थी, वह अभी तक जरा भी नहीं हिल पाया था। यही नहीं, बल्कि वह अव भी आम तौर पर परिवार के पूरे इतिहास को मुख्य धुरी माना जाता था। लोग यह स्वीकार करते थे कि इस विरोध का स्पष्टीकरण करने का मैक-लेनन का प्रयास अपर्याप्त था और यहा तक कि उन तथ्यों के भी खिलाफ जाता था जिन्हे खुद मैक-लेनन ने ही पेश किया था। परन्तु स्वय इस विरोध को, इस विचार को कि दो परस्पर अपवर्जी प्रकार के कबीलो का अस्तित्व था, जो एक दूसरे से पृथक तथा स्वतंत्र है, और जिनमे से एक प्रकार के कवीलों के पुरुष अपने कबीलो की ही स्त्रियो से विवाह करते है , मगर दूसरी प्रकार के क़बीलों में इस तरह के विवाहों की सख्त मनाही होती है - इसको लोग अकाट्य ब्रह्मवाक्य मान बैठे थे। मिसाल के लिये, पाठक जिरो-त्यूलों की पुस्तक 'परिवार की उत्पत्ति' (१८७४ ) और यहा तक कि लेब्बोक की रचना 'सभ्यता की उत्पत्ति' (चौथा संस्करण, १८८२)" को भी देख सकते है यही वह स्थान है जहा मोर्गन की मुख्य पुस्तक, 'प्राचीन समाज' ( १८७७ ) 19, जिस पर मेरी यह किताब अाधारित है, बहस में दाखिल होती है। जिन बातो को १८७१ मे मोर्गन ने केवल अस्पष्ट कल्पना की थी, उनकी यहा पूरी समझ-बूझ के साथ विशद विवेचना की गयी है। अन्तर्विवाह और वहिर्विवाह में कोई विरोध नही है ; अभी तक कही भी कोई यहिविवाही “कवीला" नही मिलता है। परन्तु जिस समय यूथ-विवाह का चलन था-और संभवतः किसी न किसी समय यह प्रथा हर जगह प्रचलित पी- उस समय कबीले के अन्दर कई समूह, गोत्र , हुआ करते थे जिनमें से हरेक में माता की प्रोर के रक्त-मम्बन्धी शामिल होते थे। उनके अन्दर वियाह करने की सख्त मनाही थी। इसलिये किसी भी गोन के पुरप, कवीले के अन्दर ही अपने लिये पलियां हामिल कर सकते थे, पोर पाम तौर. पर वे यही करते थे, पर उन्हें अपने गोत्र के बाहर ही पलिपा हागिल करनी पड़ती थी। इस प्रकार जहां कि गोत बहिर्विवाह के नियम मा माती में पालन करता था, वहीं कबोला, जिसमें सभी गोत्र गामिन होते थे, उतनी ही सख्ती से मन्तर्विवाह करने के नियम का पालन
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