1 की प्रथा पादरियों ने जारी की थी, ताकि नेकी और सचाई की राह पर चलनेवाले जर्मन बिना किसी बाधा के अपनी सम्पत्ति गिरजाघर के नाम कर सके। इस विधान को अपनी नीव बनाकर सभ्यता ने ऐसे-ऐसे काम कर दिखायै है, जो पुराने गोत्र-समाज की सामर्थ्य के बिलकुल बाहर थे। परन्तु ये काम उसने किये मनुष्य की सबसे नीच अन्तर्वृत्तियों और आवेगों को उभाड़कर और उन्हें इस प्रकार विकसित कर कि उसकी अन्य सभी क्षमतायें दव जायें। सभ्यता के अस्तित्व के पहले दिन से लेकर आज तक नग्न लोभ ही उसकी मूल प्रेरणा रहा है। धन कमानो, और धन कमानो और जितना बन सके उतना कमाओ ! समाज का धन नही, एक अकेले क्षुद्र व्यक्ति का धन-वस यही सभ्यता का एकमात्र और निर्णायक उद्देश्य रहा है। यदि इस उद्देश्य को पूरा करने की कोशिशों के दौरान विज्ञान का अधिकाधिक विकास होता गया और समय-समय पर कला के पूर्णतम विकास के युग भी वार-बार आते रहे, तो इसका कारण केवल यह था कि धन वटोरने में आज जो भारी सफलतायें प्राप्त हुई है, वे विज्ञान और कला की इन उपलब्धियो के बिना प्राप्त नहीं की जा सकती थी। सभ्यता का आधार चूंकि एक वर्ग का दूसरे वर्ग द्वारा शोषण है, इमलिये उसका सम्पूर्ण विकास सदा अविरत अंतर्विरोध के अविच्छिन्न क्रम मे होता रहा है। उत्पादन में हर प्रगति साथ ही साथ उत्पीडित वर्ग को, पानी समाज के बहुसंख्यक भाग की अवस्था मे पश्चादगति भी होती है। उतनी ही पुरानी है जितना पुराना खद रोम है, कि रोम के इतिहास मे "ऐसा कोई समय नहीं रहा है जब वसीयतनामे न होते रहे हों," वल्कि सच बात तो यह है कि वसीयत की प्रथा पूर्वरोमन काल में मृतात्माओ की पूजा से उत्पन्न हुई थी। पुराने ढग के कट्टर हेगेलवादी होने के नाते लामाल ने रोमन फानन को व्यवस्थानों का स्रोत रोमवासियों की सामाजिक भवस्यामो को नहीं, बल्कि इच्छा की "परिकल्पी अवधारणा को" माना पौर इसलिये इस सर्वथा गैर-ऐतिहासिक निष्कर्ष पर पहुंचे। पर जिस किताव में इसी परिकल्पी अवधारणा के प्राधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया हो कि सम्पति के हस्तांतरण का रोमन उत्तराधिकार प्रथा में केवल एक गौण स्यान था, उसमें यदि यह बात लिखी गयी हो तो कोई पाश्चर्य की बात नहीं है। लामाल न केवल रोमन न्यायशास्त्रियों की, विशेषकर पहले के काल के न्यायशास्त्रियो को, प्रान्त धारणाओं में विश्वास करते है, बलि इस मामले में उनसे भी आगे निकल जाते है। (एंगेल्स का नोट ) २२७
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