है। अतएव , सार्विक मताधिकार मजदूर वर्ग की परिपक्वता की कसौटी है। वर्तमान राज्य मे वह इससे अधिक कुछ नहीं है और न कभी हो सकता है; परन्तु इतना काफ़ी है। जिस दिन सार्विक मताधिकार का थर्मामीटर यह सूचना देगा कि मजदूरों में उबाल आनेवाला है, उस दिन मजदूर तथा पजीपति दोनों जान जायेंगे कि उन्हें क्या करना है। अतएव, राज्य अनादि काल से नहीं चला आ रहा है। ऐसे समाज भी हुए है जिन्होंने बिना राज्य के अपना काम चलाया और जिन्हे राज्य पौर राज्य-सत्ता की कोई धारणा न थी। आर्थिक विकास की एक निश्चित अवस्था मे, जो समाज के वर्गों में बंट जाने के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ था, इस बंटवारे के कारण राज्य अनिवार्य बन गया। अब हम उत्पादन के विकास की ऐसी अवस्था की ओर तेजी से बढ़ रहे है , जिसमे इन वर्गो का अस्तित्व न केवल आवश्यक नही रहेगा, बल्कि उत्पादन के लिये निश्चित रूप से एक बाधा बन जायेगा। तब इन वर्गो का उतने ही अवश्यम्भावी ढंग से विनाश हो जायेगा जितने अवश्यम्भावी ढंग से एक पहले वाली अवस्था में उनका जन्म हुआ था। उनके साथ-साथ राज्य भी अनिवार्य रूप से मिट जायेगा। जो समाज उत्पादकों के स्वतंत्र तथा समान सहयोग की बुनियाद पर उत्पादन का संगठन करेगा, वह समाज राज्य की पूरी मशीनरी को उठाकर उस स्थान में रख देगा जो उस समय उसके लिये सबसे उपयुक्त होगा : यानी वह राज्य को हाथ के चर्चे और कासे की दुल्हाड़ी के साथ-साथ प्राचीन वस्तुओं के अजायबघर में रख देगा।
1 इस प्रकार, उपरोक्त विश्लेषण यह बताता है कि सभ्यता ममाज के विकास की वह अवस्था है, जिसमे श्रम-विभाजन , उसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों के बीच होनेवाला विनिमय और इन दोनों चीजो को मिलानेवाला भाल उत्पादन अपने पूर्ण विकास पर पहुंच जाते हैं और पहले से चलते माये पूरे समाज को प्रान्तिकारी रूप से बदल डालते है। ममाज को पहलेवाली सभी अवस्थामो में उत्पादन मूलभूत रूप से था और इसलिये उसे उपभोग के लिये, छोटे या बड़े प्रादिम मामुदायिक कुटुम्दों में, मीधे-सीधे बाट लिया जाता था। यह माने का उनादन मत्यन्त संकुचित सीमामों के भीतर होता था, परन्तु माय ही उममे उत्पादकगण उत्पादन यी निया के मोर अपनी पैदावार के मुद मालिक सामूहिक २२३