एक और जगह उन्होंने लिखा है : (( 'यह एक अजीव बात है कि जहा तक हमे ज्ञात है किसी भी समाज मे, जहा बहिर्विवाह के साथ-साथ रक्त-सम्बन्ध का प्राचीनतम रूप मौजूद है, शिशु-हत्या एक प्रथा के रूप मे नही पायी जाती।" (पृ० १४६) ये दोनों तथ्य ऐसे है जो उनके सिद्धान्त का सीधे-सीधे खंडन करते हैं, और उनके मुकाबले में वह यही कर सकते हैं कि नये, और पहले से भी ज्यादा उलझे हुए प्रमेय प्रस्तुत करे। फिर भी, इंगलैंड में उनके सिद्धान्त का बड़े जोरों से स्वागत हुआ और लोगों ने उसकी बड़ी तारीफ़ की। वहां आम तौर पर मैक-लेनन को परिवार के इतिहास का संस्थापक और इस क्षेत्र का सबसे अधिकारी विद्वान मान लिया गया। बहिर्विवाही और अन्तर्विवाही “कबीलों" के बीच उन्होंने जो वैपरीत्य दिखाया था, वह उनके द्वारा स्वयं माने चन्द अपवादों और संशोधनों के बावजूद, प्रचलित मत के स्वीकृत आधार के रूप में कायम रहा। यदि इस क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक खोज करना और परिणामस्वरूप, कोई निश्चित प्रगति करना असम्भव हो गया, तो इसका कारण यह था कि खोज करनेवालों की आंखों पर यह पर्दा पड़ा हुआ था। चूकि इंगलैंड में, और उसकी देखादेखी अन्य देशो में भी, मैक-लेनन के महत्त्व को बहुत बढा-चढाकर बताना एक फैशन-सा बन गया है, इसलिये हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम इसके मुकाबले में पाठकों का ध्यान इस बात की भोर आकर्पित करे कि बहिर्विवाही तथा अन्तर्विवाही "कबीलो" में एक सर्वथा गलत विरोध दिखा करके मैक-लेनन ने जो नुकसान किया है, वह उनकी खोजों से हुए फायदे को दवा देता है। इस बीच , बहुत-से ऐसे तथ्य सामने आ गये जो मैक-लेनन के बनाये हुए सुघड़ चौखटे में फिट नहीं बैठते थे। मैक-तेनन विवाद के केवल तीन रूपो से परिचित थे: बहु-पत्नी प्रथा, बहु-पति प्रथा और एकनिष्ठ विवाह । परन्तु जब एक वार लोगों का ध्यान इस प्रश्न की ओर आकर्षित हो गया तो इस बात के नित नये प्रमाण मिलने लगे कि पिछड़ी हुई जातियों में विवाह के ऐसे रूप भी पाये जाते थे, जिनमें पुरुषों का एक दल स्त्रियों के एक दल का सामूहिक रूप से स्वामी होता था; और लेबोक ने (१८७० २१
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