. के बीच बांट दी जाती थी, गोत्र उसे मामुदायिक कुटुम्बो मे और अन्त में अलग-अलग व्यक्तियो के बीच इस्तेमाल के लिये बाट देता था। उन्हे शायद जमीन पर कब्जे का कुछ अधिकार मिला हुआ था, पर उससे अधिक कुछ नहीं। इस अवस्था की प्रौद्योगिक उपलब्धियो में दो विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। एक है करघा, दूसरा है खनिज धातुओं को गलाने व साफ करने तथा धातुओं से काम की चीजें बनाने की कता। उनमे तावे , टिन, और उन्हे मिलाकर बनाये जानेवाले कासे का सबसे अधिक महत्त्व था। कासे से बड़े काम के औजार और हथियार बनते थे, पर वे पत्थर के औजारो की ज़रूरत को खत्म नहीं कर सकते थे। यह काम तो सिर्फ लोहा ही कर सकता था, परन्तु उसका उत्पादन अभी तक अज्ञात था। सोना और चादी जेवर बनाने और सजावट के काम मे आने लगे थे, और वे उस समय भी ताये और कासे से कही अधिक मूल्यवान् समझे जाने लगे होगे। जव पशुपालन, खेती, घरेलू दस्तकारी- मभी शाखाओं मे उत्पादन का विकास हुआ तो मानव थम-शक्ति जितना उसके पोषण में खर्च होता था, उससे अधिक पैदा करने लगी । साथ ही गोत्र के , या सामुदायिक कुटुम्ब के , अथवा अलग-अलग परिवारों के प्रत्येक सदस्य के जिम्मे रोजाना पहले से कही ज्यादा काम आ पड़ा। इसलिये जरूरत महसूस हुई कि कही से और श्रम-शक्ति लायी जाये। वह युद्ध से मिली। युद्ध में जो लोग बन्दी हो जाते थे, अब उनको दास बनाया जाने लगा। उस समय की सामान्य ऐतिहासिक परिस्थितियों में जो पहला बड़ा सामाजिक श्रम विभाजन हुआ , वह श्रम को उत्पादन क्षमता को बढाकर, अर्थात् धन में वृद्धि करके और उत्पादन के क्षेत्र को विस्तार देकर समाज में अपने पीछे लाजिमी तौर पर दास-प्रथा को ले आया। पहले बड़े मामाजिक श्रम-विभाजन के परिणामस्वरूप खुद समाज के पहले वडे विभाजन का उदय हुआ, समाज दो वर्गों में बंट गया : एक ओर दासों के मालिक हो गये और दूमरी ओर दास , एक पोर शोपक हो गये और दूसरी ओर शोषित । जानवरों के रेवड़ और ग़ल्ले कब और कैसे कबीले अथवा गोत्र की सामूहिक सम्पत्ति से अलग-अलग परिवारों के मुखियाओं को सम्पत्ति बन गये, यह हम आज तक नहीं जान सके है। परन्तु मुख्यतः यह परिवर्तन इसी अवस्था में हुआ होगा। जानवरो के रेवड़ो तथा अन्य सम्पदाओं के २०७
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