लेकिन उसकी लिये पूर्ण रूप से पर्याप्त था जिनसे वह उत्पन्न हुअा था। वह एक प्रकार के विशिष्ट प्राकृतिक समूह से अधिक कुछ न था और वह इस रूप में सगठित समाज में जो प्रांतरिक संघर्ष उठ सकते थे, उनका निपटारा करने में समर्थ था। बाह्य क्षेत्र में संघर्ष युद्ध के द्वारा तय किये जाते थे, जिसका अंत किसी कबीले के मिट जाने में हो सकता था, अधीनता में कभी नही। गोन-व्यवस्था में शासकों और शासितो के लिये कोई स्थान न था - इसी बात मे गोत्र-व्यवस्था की महानता और उमकी परिमितता दोनो है। प्रांतरिक क्षेत्र में, अभी अधिकारों और कर्तव्यो में विभेद न हुआ था; किसी अमरीकी इंडियन के सामने यह सवाल कभी नही उठता था कि सार्वजनिक मामलो में भाग लेना, रक्त-प्रतिशोध लेना या क्षतिपूर्ति करना उसका अधिकार है अथवा कर्तव्य । यह सवाल उसको उतना ही बेमानी लगता जितना यह कि खाना, सोना या शिकार करना उसका कर्तव्य है अथवा अधिकार। न ही कोई क़बीला या गोन भिन्न- भिन्न वर्गों में बंट सकता था। इसलिये अब हमे देखना चाहिये कि इस व्यवस्था का आर्थिक आधार क्या था? आवादी बहुत ही छितरी हुई थी। वह केवल कबीले के निवास स्थान मे ही धनी होती थी, जिसके चारो ओर कबीले के लिये शिकार के वास्ते एक लम्बा-चौड़ा जगली इलाका होता था, और उसके भी आगे वह तटस्थ संरक्षक वन-भूमि होती थी जो उम कवीले को दूसरे क़बीलो से अलग करती थी और उसकी रक्षा करती थी। कबीले के अंदर पाया जानेवाला श्रम- विभाजन बस प्रकृति को उपज या, यानी केवल नारी और पुरुष के बीच थम-विभाजन पाया जाता था। पुरप युद्ध मे भाग लेते थे, शिकार करते थे, मछली मारते थे, आहार की सामग्री जुटाते थे और इन तमाम कामो के लिये आवश्यक औजार तैयार करते थे। स्त्रिया घर की देखभाल करती थी और खाना-कपडा तैयार करती थी। वे खाना पकाती थी, बुनती थी और सीती थी। प्रत्येक अपने-अपने कार्यक्षेत्र का स्वामी था: पुरपो का जंगल में प्राधान्य था, तो स्त्रियो का घर मे, प्रत्येक उन प्रौजारो का मालिक था जिन्हे उसने बनाया था और जिन्हे वह इस्तेमाल करता था। हथियार और शिकार करने तया मछली मारने के प्रौजार पुरुषों की सम्पत्ति थे और घर के सरोसामान तथा वर्तन-भाडे स्त्रियों की सम्पत्ति थे। कुटुम्ब सामुदायिक प्रकार का था और एक कुटुम्वधर में कई, और अक्मर बहुत . २०४
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