Ĉ बर्बरता और सभ्यता यूनानी, रोमन और जर्मन-हम इन तीन बड़े उदाहरणों के रूप में इस बात का अध्ययन कर चुके है कि गोत्र-व्यवस्था का विनाश किस प्रकार हुआ। अब हम अंत में, उन आम अार्थिक परिस्थितियों का अध्ययन करेगे जिन्होने बर्बर युग की उन्नत अवस्था में समाज की गोत्र-व्यवस्था की नीव पोद डाली थी और जिनके कारण सभ्यता के युग का प्रारम्भ होते-होते गोत्र-व्यवस्था बिलकुल खत्म हो गयी। इस अध्ययन के लिये मार्क्स की 'पूजी' उतनी ही आवश्यक है जितनी मौर्गन की पुस्तक । जागल युग की मध्यम अवस्था में पैदा होकर तथा उसकी उन्नत अवस्था मे और विकास करने के बाद गोत्र-व्यवस्था, जहां तक हम अपनी मूल सामग्री से किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते है, बर्बर युग को निम्न अवस्था में पूर्ण उत्कर्ष पर पहुंच गयी थी। अतएव हम अपना अध्ययन इस अवस्था से ही शुरू करेगे। इस अवस्था में, जिसका उदाहरण अमरीकी इंडियन प्रस्तुत करते है, हम गोव-व्यवस्था को पूर्ण विकसित रूप में पाते है। हर क़बीला कई गोत्रों मै, बहुधा दो गोत्रो में, बंटा होता था। पावादी बढ जाने पर ये आदिम गोन फिर कई संतति-गोत्रो में बंट जाते थे, और उनके सम्बन्ध में मातृ- गोन बिरादरी के रूप में प्रगट होता था। सुद कवीला भी कई कवीलों में बंट जाता था, जिनमें से हर एक में प्रायः वे ही पुराने गोन होते थे। कम मे कम कुछ स्थानों में एक दूसरे से सम्बन्धित कबीले मिलकर एक महासंप बना लेते थे। यह सरत मंगठन उन मामाजिक परिस्थितियों के २०३
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