दक्षिण-पूर्व को मोर बढ़ गया और वह इस हमलावर मोर्चे का बायां भाग बन गया। उत्तरी जर्मन लोग (हर्मीनोन ) ऊपरी डेन्यूब के तट पर मोर्चे के केन्द्र में बढ़ भाये और इस्तीवोनियन लोग, जो इस समय तक फेक कहलाने लगे थे, राइन नदी के किनारे-किनारे मोर्चे के दायें भाग में बढ़ पाये । ब्रिटेन को जीतने का काम इंगीवोनियन लोगो के जिम्मे पड़ा। पांचवी सदी के अंत में शक्तिहीन, रक्तहीन और नि.सहाय रोमन साम्राज्य के द्वार जर्मन माक्रमणकारियों के लिये बिलकुल खुले हुए थे। पिछले अध्यायों में हमने प्राचीन यूनानी और रोमन सभ्यता के शैशव काल को देखा। अब हम उसके मृत्यु काल को देख रहे है। कई सदियो से भूमध्य सागर के सभी देशों पर रोम की विश्व शक्ति का रन्दा चल रहा था। उन जगहो को छोड़कर जहां यूनानी भापा ने उसका मुकाबला किया , तमाम जातीय भाषाएं एक विकृत ढंग की लैटिन के सामने पराजित हो गयी थी। जाति-भेद नाम की कोई चीज़ नही रह गयी थी। गाल, इबेरियन , लाइगूरियन, नौरिक जातियां नही रह गयी थी। अब सब रोमन हो गये थे। रोमन शासन-व्यवस्था और रोमन कानून ने पुराने रक्तसम्बद्ध समूहो को हर जगह नष्ट कर दिया था और इस प्रकार स्थानीय तथा जातीय आत्म-अभिव्यक्ति के अन्तिम अवशेषो को ध्वस्त कर दिया था। नया अधकचरा रोमवाद इस क्षति को पूरा नही कर सकता था। वह किसी जातीयता को नहीं, बल्कि केवल जातीयता के प्रभाव को प्रगट करता था। नये राष्ट्रो के निर्माण के तत्व हर जगह मौजूद थे। विभिन्न प्रान्तो की लैटिन बोलियां एक दूसरे से अधिकाधिक भिन्न होती जा रही थी। जिन प्राकृतिक सीमानो ने एक समय इटली, गाल, स्पेन, अफ्रीका को स्वतंत्र प्रदेश बना दिया था, वे अब भी मौजूद थी और उनका प्रभाव अभी भी पड़ रहा था। फिर भी कोई ऐसी शक्ति नही दिखायी पड़ती थी जो इन तत्त्वो को मिलाकर नये राष्ट्र गठित करने में समर्थ होती। सृजन शक्ति को तो जाने दीजिये, विकास की क्षमता या प्रतिरोध की शक्ति का भी कोई चिह्न कही नही दिखायी देता था। उस विस्तृत भूखंड मे रहने- वाले विशाल जन-समुदाय को केवल एक चीज़ ने-रोमन राज्य ने-बाध रखा था और वही समय बीतते-बीतते इस जन-समुदाय का सबसे बड़ा शत्रु और उत्पीड़क बन गया था। प्रान्तों ने रोम को बरवाद कर दिया था, रोम खुद और सभी नगरो के समान एक प्रान्तीय नगर बन गया था। उसे १६०
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