ख्याति प्राप्त कर लेता था, उसके चारों ओर लूट के माल के इच्छुक नौजवान योद्धाओं का एक दल जमा हो जाता था। यह दल सेनानायक के प्रति व्यक्तिगत रूप से वफादार होता था और सेनानायक अपने दल के प्रति। वह उन्हें खिलाता-पिलाता था, समय-समय पर उन्हें तोहफे देता था, और दरजावार तरतीव से उनका संगठन करता था : एक अंगरक्षक दल तथा छोटे-मोटे अभियानों में तत्काल भाग लेने के लिये सन्नद्ध एक टुकड़ी और बड़ी लड़ाइयों के लिये प्रशिक्षित अफसरों का एक जत्या होता था। ये निजी सैन्य दल यद्यपि काफ़ी कमजोर होते होंगे और थे भो, जैसा कि बाद में, उदाहरण के लिये, इटली में प्रोडोग्रासर के तहत साबित हुआ, परन्तु उन्होंने प्राचीन जन-स्वातन्त्र्यों के ह्रास के लिये घुन का काम किया, जैसा कि जातियों के प्रव्रजन के दौरान तथा उसके बाद भी देखा गया। कारण कि एक तो उन्होंने शाही ताकत के पनपने के लिये अनुकूल भूमि प्रस्तुत की ; दूसरे, जैसा कि टेसिटस ने कहा है, इन सेनाओं को बनाये रखने के लिये जरूरी था कि उन्हें सदा लड़ाइयों तथा लूट-मार की मुहिमों में लगाये रखा जाये। लूट-पाट उनका मुख्य उद्देश्य बन गया। यदि उनके सरदार को अपने पास-पड़ोस में कोई सम्भावना नही दिखायी देती थी, तो वह अपनी सेना को लेकर दूसरे देशों में चला जाता था, जहां युद्ध चलता होता तया लूट का माल हासिल करने की सम्भावना दिखायो देती थी। जो जर्मन सहायक सेनायें रोमन झंडे के नीचे स्वयं जर्मनो से भी एक बड़ी संख्या में लडी थीं, वे मांशिक रूप में ऐसे ही दलों से बनी थीं। यही वह पहला बीज था जिससे बाद में चलकर Landsknecht• व्यवस्था ने जन्म लिया जो जर्मनों के लिये कलंक और अभिशाप बन गयो। रोमन साम्राज्य को जीतने के बाद दासों तथा रोमन दरबारी खिदमतगारों के साथ राजामों के मे निजी सैन्य दल भी वाद के काल में अभिजात वर्ग के दूसरे संघटक भाग बन गये। इस प्रकार, जातियों के रूप में गठित जर्मन कबीलों का संघटन उसी प्रकार का था जैसा वीर-काल के यूनानियों मोर तयाकथित राजामों के काल के रोमन लोगों में विकसित हुमा पा: जन-समाएं, गोत्रों के मुखि . भाड़े के मिपाही।-सं० १८६
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