गोत्र-व्यपरया गे उत्पन्न हुमा था। उदाहरण के लिये, अतिथि-मवार को प्रया के समान यह प्रथा भी अगरीकी :ण्टियनों में पायी जाती है। जमंनो में प्रतिदि-सत्कार गो प्रया का जो वर्णन टेसिटम ने दिया है ('जर्म- निया', अध्याय २१), वह छोटी-मोटी बातों में भी लगभग वही है जो मोर्गन ने अपने इण्डियनों के बारे में दिया है। एक गमय इस बात पर बडी गरम और अविराम वहम छिडी हुई थी कि टेसिटग के समय तक जमनी ने येती की जमीन का अन्तिम रूप से विभाजन कर डाला या या नहीं, और इस प्रश्न से सम्बन्धित टेसिटस के इतिहास ये अंशों का क्या अर्थ लगाया जाये। पर अब यह यहस पत्म हो चुकी है। अब यह साबित हो गया है कि लगभग सभी जातियो मे शुरू में पूरा गोन मोर बाद में सामुदायिक कुटुम्ब मिल-जुलकर जमीन जोत. ता-योता था और सीजर ने अपने समय में भी सुएवी लोगो में यह प्रथा देखी थी। बाद में अलग-अलग परिवारों के बीच जमीन वांट देने और समय-समय पर फिर से बंटवारा करने की प्रथा जारी हुई। जर्मनी के कुछ भागों में तो खेती की जमीन को एक निश्चित अवधि के बाद फिर से बाट देने की यह प्रथा आज तक पायी जाती है। यह सब साबित हो जाने के बाद अब उस बहस मे और माथा खपाने की जरूरत नही रह गयी है। डेढ़ सौ साल के अरसे में यदि जर्मन लोग सामूहिक खेती से-जिसके बारे में सीज़र ने साफ़ शब्दो में कहा है कि सुएवी लोगो में जमीन का बंटवारा या व्यक्तिगत खेती नहीं होती थी-आगे बढकर टैसिटस के काल मे हर साल जमीन को फिर से बाटने और व्यक्तिगत ढंग से खेती करने की प्रथा पर पहुंच गये थे, तो मानेना पड़ेगा कि उन्होंने काफी प्रगति की। इतने कम समय में और बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के इस अवस्था से आगे बढ़कर जमीन पर पूरी तौर पर निजी स्वामित्व की अवस्था में पहुंच जाना नितांत असम्भव था। अतएव मै टेसिटस के शब्दों का केवल वही अर्थ लगाता हूं जो उसने लिखा है, और उसने यह लिखा है : वे हर साल खेती की जमीन को बदल देते है ( या फिर से बांट लेते है) और ऐसा करने के दौर काफी सामूहिक जमीन वध जाती है।117 खेती और भूमि के अधिकरण की यह अवस्था जर्मनों की उस काल की गोन-व्यवस्था के विलकुल अनरूप थी। उपरोक्त पंराग्राफ़ को मैंने बिना किसी परिवर्तन के उसी रूप में छोड़ १८०
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