- तथा चाचा और मामा उत्तराधिकारी होते थे। मामा को भी उत्तराधिकार देना उपरोक्त प्रथा से सम्बन्ध रखता है और सिद्ध करता है कि उस समय जर्मनो मे पितृ-सत्ता कितनी नयी चीज़ थी। मध्य युग के उत्तर काल में भी हमें मातृ-सत्ता के चिह्न मिलते हैं। इस काल भै , विशेषकर भूदासों में, किसी का पिता कौन है, इसका पूर्ण निश्चय न होता था; और इसलिये जब कोई सामन्त किसी भागे हुए भूदास को किसी शहर से वापस मंगवाना चाहता था तो उदाहरणार्थ पारसबर्ग, बाजल और कैसरस्लोटर्न मे उसके लिये जरूरी होता था कि वह भदास की केवल माता के पक्ष के छ: निकटतम रक्त-सम्वन्धियो के शपथ-पत्रो द्वारा यह प्रमाणित करे कि वह उसका भूदास था। (मारेर , 'नागरिक विधान', खंड १, पृष्ठ ३८११) मातृ-सत्ता का एक और अवशेष था, जो उस समय तक लुप्त होने लगा था और जो रोमवासियों के दृष्टिकोण से समझ मे न आनेवाली बात थी। वह यह कि जर्मन लोग नारी जाति का बड़ा आदर करते थे। जर्मनों से यदि किसी क़रार को पूरा कराना होता था तो उसका सबसे अच्छा तरीका यह समझा जाता था कि उनके कुलीन परिवारों की लड़कियों को प्रोल बना लिया जाये। युद्ध के समय जर्मनो की हिम्मत सबसे ज्यादा इस हौलनाक खयाल से बढ़ती थी कि यदि उनको हार हो गयी तो दुश्मन उनकी बहू-बेटियो को पकड़ ले जायेंगे और अपनी दासियां बना लेंगे। जर्मन लोग नारी को पवित्र मानते थे और समझते थे कि वह अनागतदर्शिका होती है। चुनाचे वे सबसे महत्त्वपूर्ण मामलों में स्त्रियों को सलाह पर कान देते थे। अक्टेरिया कबीले की लिप्पे नदी के किनारे रहनेवाली पुजारिन, वेलेडा, बटाविया के उस पूरे विद्रोह की प्रेरक शक्ति थी, जिसके द्वारा जर्मनों और बेल्जियनों ने सिविलिस के नेतृत्व में गाल प्रदेश में रोमन शासन की नीव हिला दी थी। मालूम पड़ता है कि घर के अन्दर नारियो का एकच्छन राज था। टेसिटस कहता है कि औरतो को, धूढो मौर बच्चो के साथ सारा काम करना पड़ता था, क्योकि मदं शिकार करने जाते थे, शराब पीते थे और आवारागर्दी करते थे। परन्तु वह यह नहीं बताता कि खेत कौन जोतता था पोर चूकि उसने साफ-साफ कहा है कि दासी को केवल कर देना पड़ता था और उनसे बेगार नहीं लिया जाता था, पड़ता है कि येती मा जो थोड़ा-बहुत काम होता था, उसे मदं लोगों की बहुसंख्या ही करती थी। इसलिये मालूम १५८
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