133 हुमा है। . स्काटलैंड में गोत्र-व्यवस्था का पतन १७४५ के विद्रोह के दमन से प्रारंभ इस व्यवस्था मे स्काटलैंड का कवीला कौनसी कड़ी था, अभी इसकी खोज होना बाकी है; परन्तु वह इस व्यवस्था की एक कड़ी था, इसमें कोई सन्देह नहीं है। स्काटलैंड की पहाड़ियों में यह कवीला क्या चीज़ थी, यह वाल्टर स्काट के उपन्यासों को पढ़कर हमारी आंखों के सामने सजीव हो उठता है। मोर्गन के शब्दों में यह "संगठन और भावना की दष्टि से गोत्र-व्यवस्था का एक बहुत अच्छा उदाहरण है और इस बात का एक असाधारण प्रमाण है कि गोत्र-जीवन का अपने सदस्यो पर कितना अधिक ज़ोर होता था. उनके कुलवैर और उनकी रक्त-प्रतिशोध की प्रथा, प्रत्येक गोत्र का स्थान विशेष मे निवास, जमीनों की संयक्त रूप से जोताई-बोनाई, कबीले के सदस्यो में मुखिया के प्रति और एक दूसरे के प्रति वफा- दारी की भावना -- इन सव मे हमे गोत्र की सामान्य और स्थायी विशेषतानो का दर्शन होता है ... वश पुरुप से चलता था। यानी, केवल पुरुषो के बच्चे कबीले के सदस्य माने जाते थे और स्त्रियों के बच्चे अपने-अपने पितामों के कबीले के सदस्य होते थे। "131 135 पिक्ता नामक राज-परिवार इस बात का प्रमाण है कि स्काटलैंड मे पहले मातृ-सत्ता कायम थी। बेड़े के अनुसार इस राज-परिवार में उत्तराधिकार मातृ-परम्परा द्वारा प्राप्त होता था। यहा तक कि स्काट और साथ ही वेल्स लोगो मे भी इस बात का एक प्रमाण मिलता है कि उनमे कभी पुनातुआन परिवार का चलन था। हमारा मतलव इस बात से है कि मध्य युग तक उनमे पहली रात के अधिकार की प्रथा पायी जाती थी, अर्थात् कवीले का मुखिया या राजा, पहले के सामूहिक पतियों के अन्तिम प्रतिनिधि के रूप में, हर नव वधू के साथ पहली रात बिताने का दावा कर सकता था और केवल निष्क्रय-धन देकर ही नव दम्पत्ति को इससे छुटकारा मिलता था। यह बात निर्विवाद रूप से सच है कि जातियों के प्रव्रजन के समय तक जर्मन लोग गोत्रो मे संगठित थे। हमारे युग ( ईसा ) के कुछ सौ माल पहले ही ये लोग डेन्यूव , राइन , विस्चुला नदियों और उत्तरी सागरों के दिन १७३
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