उन कोई उद्देश्य नही मालूम पडता कि वे एक दूसरे की भरपूर मरम्मत करने के लोकप्रिय खेल के लिये जमा हो। वास्तव में इन दलो द्वारा, गोत्रो को कृत्रिम रूप से पुनरुज्जीवित, वाद के काल में प्रतिस्थापित किया गया है जो अव नष्ट हो चुके है ; वे अपने विशिष्ट ढंग से वंशगत गोत्र-चेतना के नरन्तर्य को प्रकट करते है। प्रसंगवश यह भी कह दें कि कुछ स्थानो में एक गोत्र के सदस्य आज भी लगभग उसी इलाके में रहते पाये जाते हैं जो उनके गोत्र का पुराना इलाक़ा था। उदाहरण के लिये, इस सदी के चौथे दशक में मोनापन हलके के अधिकतर निवासियो मे केवल चार पारिवारिक नाम पाये जाते थे। मतलब यह कि इस हलके के तमाम लोग चार गोत्रों या कवीलों के वंशज थे।' - , .
- आयरलैंड में मैंने कुछ दिन बिताये 113 तो एक बार फिर मुझे इस
वात का अहसास हुआ कि इस मुल्क को देहाती आवादी के मन मे प्राज भी किस हद तक गोत्र युग की धारणाएं जीवित है। जमीदार को, जिससे लगान पर जमीन लेकर किसान खेती करता है, वह अभी भी एक प्रकार का कबायली मुखिया समझता है जो सब के हित में खेती की देखभाल करता है, जिसे किसानो से लगान के रूप मे खिराज पाने का अधिकार है, पर साथ ही जिसका यह कर्तव्य भी है कि जरूरत पड़ने पर किसानों की मदद करे। इसी तरह , हर खुशहाल प्रादमी का यह फर्ज समझा जाता है कि जब भी उसके गरीब पड़ोसी मुसीबत में हों, तो वह उनकी मदद करे। यह मदद खैरात नहीं है। कबीले के गरीव सदस्य को कबीले के धनी सदस्य या कबीले के मुखिया से यह मदद पाने का हक है। इसी कारण अर्थशास्त्री तथा न्यायशास्त्री अक्सर यह शिकायत करते नजर आते है कि आयरलैंड के किसानों के दिमाग मे पूजीवादी सम्पत्ति के अाधुनिक विचार को बैठाना असम्भव है। आयरलैंड के निवासी यह समझने में बिलकुल असमर्थ है कि कोई ऐसी सम्पत्ति भी हो सकती है जिसके केवल अधिकार होते है और कर्तव्य नहीं होते। कोई आश्चर्य नहीं कि गोन-समाज के ऐसे भोले विचारो को लिये हुए आयरलैंड के लोग जय अचानक इंगलैंड या अमरीका के बड़े शहरों में ऐसी आवादी के बीच पहुंच जाते है जिसके नैतिक तथा कानूनी मानदंड बिलकुल भिन्न ढंग के होते है, तब नैतिकता तथा न्याय दोनो के बारे में उनके विचार गडबड़ घोटाले में पड़ जाते है, वे संतुलन खो बैठते हैं और अक्सर उनकी पूरी की पूरी जमातों का नैतिक पतन हो जाता है। ( १८६१ के चौथे संस्करण में एंगेल्स का नोट) १७२