एक विलकुल बेसिर-पैर की बात है। मोम्मसेन भी यह महसूस करते है और इसलिये यह अटकल लगाते है : 'बहुत सम्भव है कि गोत्र के बाहर विवाह करने के लिये न केवल अधिकृत व्यक्ति की, बल्कि गोत्र के सभी सदस्यों की अनुमति लेना आवश्यक था (पृ. १०, टिप्पणी)। एक तो मोम्मसेन ने यहा एक बहुत ही स्थूल कल्पना की है। दूमरे, यह अनुमान उपरोक्त उद्धरण के स्पष्ट शब्दों के खिलाफ जाता है। फ़ेसेनिया को यह अधिकार उसके पति के स्थान पर सीनेट दे रही है। फेसेनिया का पति उसे जो अधिकार दे सकता था, सीनेट उसे उससे न तो कम दे रही है और न ज्यादा। परन्तु सीनेट जो कुछ दे रही है, वह एक निरपेक्ष अधिकार है जिस पर किसी तरह का बंधन या शतं नही है। जिससे कि यदि फेसैनिया इस अधिकार का उपयोग करती है तो उसके नये पति को कोई परेशानी न उठानी पड़े। वल्कि सीनेट वर्तमान और भावी कौसिलो और प्रीटरो को यह आदेश भी देती है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि इस अधिकार का उपयोग करने के कारण फैसेनिया को कोई असुविधा न हो। इसलिए मोम्मसेन जो बात मानकर चले है, उसे कदापि अंगीकार नही किया जा सकता। फिर, मान लीजिये कि कोई औरत किमी दूसरे गोत्र के सदस्य से विवाह कर लेती है, पर इसके बाद भी अपने गोत्र की ही सदस्या बनी रहती है। उपरोक्त उद्धरण के अनुसार ऐसी मूरत में उसके पति को यह अधिकार होगा कि वह अपनी पत्नी को उसके गोत्र के बाहर विवाह करने की इजाजत दे दे। मतलव यह कि पति को एक ऐसे गोत्र के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार होगा जिसका कि वह खुद सदस्य नहीं है। यह बात इतनी अतर्कसंगत है कि उसके बारे में और कुछ कहने की अावश्यकता नहीं है। ऐसी हालत में हमारे सामने यह मानकर चलने के मिवा और कोई चारा नहीं रहता कि अपने विवाह के द्वारा स्त्री ने एक अन्य गोत्र के पुरष से विवाह किया था और ऐमा करके वह तुरन्त अपने पति के गोन की सदस्या हो गयी थी। खुद मोम्मसेन भी मानते है कि ऐमी मूरत में यही होता था। मोर यह मानने ही पहेली अपने पाप मुलझ जाती है। विवाह १६०
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