ही मिलते है। रोमन राज्य ने शुरू से ही इतनी प्रचड शक्ति का परिचय दिया था कि क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी उसके कंधो पर आ गयी। जब एप्पियस क्लौडियस 118 गिरफ्तार किया गया तब उसके पूरे गोत्र ने , यहा तक कि उसके व्यक्तिगत शत्रुओं ने भी, शोक मनाया था। दूसरे प्युनिक युद्ध 19 के समय विभिन्न गोत्र अपने सदस्यों को, जो बन्दी बना लिये गये थे, रिहा कराने के वास्ते धन जमा करने के लिए एक हुए थे; लेकिन सीनेट ने ऐसा करने की मनाही कर दी थी। ७. गोत्र के सदस्यों को अधिकार था कि वे गोत्र के नाम का प्रयोग करें। यह नियम सम्राटों के काल तक लागू रहा। जो दास मुक्त कर दिया जाता था उसको पहले के अपने मालिकों के गोत्र का नाम धारण करने की अनुमति दे दी जाती थी पर उसे गोत्र के सदस्य के अधिकार नही मिलते थे। गोत्र को अधिकार होता था कि अजनबियो को अपने सदस्य बना ले। यह उन्हें किसी परिवार का सदस्य बनाकर किया जाता था (अमरीकी इडियनो में भी यही प्रथा थी)। परिवार का सदस्य बन जाने पर उन्हे गोत्र की सदस्यता भी मिल जाती थी। ६. मुखियानों को चुनने और पद से हटाने के अधिकार का कही जिक नही मिलता। परन्तु रोम के प्रारम्भिक काल मे चूकि निर्वाचित राजा से लेकर नीचे तक के सभी पदो को चुनाव अथवा नामजदगी के द्वारा भरा जाता था, और चूकि विभिन्न क्यूरियायें अपने पुरोहितो को भी खुद चुनती थी, इसलिये हमारे लिये यह मान लेना उचित होगा कि गोनो के मुखियात्री (principes) को भी इसी तरह चुना जाता रहा होगा - भले ही उन्हें एक ही परिवार से चुनने का नियम पूरी तरह क्यों न माना जाता रहा हो। ऐसे थे रोमन गोत्र के अधिकार। एक पितृ-सत्ता में पूर्ण सक्रमण को छोडकर यह हू-ब-हू वही चित्र है जो इरोक्वा गोत्र के अधिकारो और कर्तव्यों के बारे मे हमे मिला था। यहा भी “इरोक्वा हमें साफ़ दिखायी पड़ता है सबसे अधिक माने-जाने इतिहासकारों में भी रोम की गोत्र-व्यवस्था को लेकर आज तक कैसा मत्त-भ्रम फैला हुआ है। इसका उदाहरण देखिये। गणताविक तथा औगस्तस के युग में रोमन व्यक्तिसूचक नामो के विषय मे मोम्मसेन ने जो प्रबंध लिखा है ('रोम सम्बन्धी अनुसंधान', बर्लिन , १८६४, खंड १11), उसमें उन्होंने कहा है : "120 1 १५७
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