व्यवस्था की मनोवृत्ति का ही परिचायक था। विना पुलिम के राज्य कायम नहीं रह सकता था, परन्तु राज्य अभी पैदा हो हुग्रा था और इतनी नैतिक प्रतिष्ठा प्राप्त नही कर पाया था कि पुलिस के काम को, जो पुराने गोन के सदस्यों को अवश्य ही घृणित लगता था, सम्मानित काम में वदल देता। राज्य, जिसका दांचा अब मोटे तौर पर तैयार हो गया था, एथेंस- वामियों की नयी सामाजिक परिस्थिति के कितना उपयुक्त था, यह इम यात से जाहिर है कि इसके बाद एथेंस मे धन-दौलत, व्यापार और उद्योग की वडी तेजी से तरक्की हुई। अब जिस वर्ग-विरोध पर सामाजिक और राजनीतिक संस्थाएं प्राधारित थी, वह अभिजात वर्ग तथा माधारण जनता का विरोध नहीं था, बल्कि वह दासों और स्वतंत्र लोगो का, प्राथितो और स्वतंत्र नागरिको का विरोध था। अव एथेंस समृद्धि के शिखर पर था, तब वहा स्वतंत्र एथेनी नागरिको की कुल संख्या, जिसमें स्त्रिया और वच्चे भी शामिल थे, करीब ६०,००० थी; दास स्त्री-पुरुषों की संख्या ३,६५,००० थी और आश्रितों की संख्या-जिनमें विदेशों से आये लोग और ऐसे दास थे जो मुक्त कर दिये गये थे-४५,००० थी। इस प्रकार, एक वालिग पुरुप नागरिक के पीछे कम से कम १८ दास और दो से अधिक आश्रित लोग थे। दासों की इतनी बड़ी संख्या होने का कारण यह था कि उनमे से बहुत-से लोग समूहो में काम करते थे। वहां बड़े-बड़े कमरो में बहुत-से दासो को एक जगह जमा होकर प्रोवरसियरो की देखरेख मे काम करना पड़ता था। व्यापार और उद्योग के विकास के साथ-साथ चन्द आदमियो के हाथों में अधिकाधिक दौलत इकट्टी होती गयी ; आम स्वतंत्र नागरिक गरीबी के गढ़े में गिर गये और उनके सामने दो ही रास्ते रह गये : या तो दस्तकारी का काम शुरू करें और दाम श्रमिको के साय होड़ करें, जो नागरिको की प्रतिष्ठा के खिलाफ और एक नीच वात समझी जाती थी और जिसमें सफलता प्राप्त करने की भी बहुत कम आशा थी, या पूरी तरह मुहताजी के शिकार हो जायें। उस समय जो परिस्थितिया थी, उनमे मुहताज होनेवाली बात ही हुई, और चूकि उनकी ही बड़ी सख्या थी इसलिये उनके साथ-साथ पूरे एथेनी राज्य का ध्वस हो गया। एथेंस का पतन लोकतंत्र के कारण नही हुप्रा, जैमा कि राजानो के तलवे चाटनेवाले यूरोपीय स्कूलमास्टर हमें बताना चाहते है, उसका पतन दास- १५२
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