कम पांच सौ, तीन सौ और डेढ सौ मेडिम्नस अनाज की उपज होती थी (१ मेडिम्नस करीव ४१ लिटर के बराबर होता है।)। जिन लोगों के पास इमसे भी कम जमीन थी, या विलकुल नहीं थी, उन्हें चौथे वर्ग मे रखा गया था। सार्वजनिक पद केवल पहले तीन वर्गों के सदस्यों को ही मिल सकते थे। सबसे ऊंचे पद पहले वर्ग के लोगों को ही मिलते थे। चौथे वर्ग को केवल जन-सभा मे बोलने और वोट देने का अधिकार प्राप्त था। परन्तु सारे पदाधिकारी जन-सभा में ही चुने जाते थे, उसी के सामने उन्हे अपने कामो के लिये जवाब देना पड़ता था और कानून भी यही सभा बनाती थी; इस सभा मे चौथे वर्ग का बहुमत था। कुलीनता के विशेषाधिकारों को कुछ हद तक धन-दौलत के विशेषाधिकारो के रूप में पुनःस्थापित कर दिया गया था, परन्तु निर्णायक शक्ति जनता के हाथो मे बनी रही। सेना के पुन संगठन का आधार भी इन्ही चार वर्गों को बनाया गया। पहले दो वर्गों से घुड़सवार सेना में भर्ती की जाती थी, तीसरे वर्ग को बख्तरवन्द पैदल सेना का काम करना पड़ता था, चौथे वर्ग के लोगो को या तो साधारण पैदल सेना का काम करना पड़ता था जो बस्तरबंद नही होती थी, उन्हे नौ-सेना में भर्ती होना पडता था और उन्हें शायद वेतन भी मिलता या था। इस प्रकार संविधान में एक नये तत्त्व का , निजी सम्पत्ति का प्रवेश हो गया। नागरिको के अधिकार और कर्तव्य क्रमानुसार जमीन की मिल्कियत के आकार के आधार पर निश्चित हुए और जैसे-जैसे मिल्की वर्गों का प्रभाव बढता गया, वैसे-वैसे पुराने रक्त-सम्वद्धता पर आधारित समूह पृष्ठभूमि मे पड़ते गये । गोन-व्यवस्था की एक और हार हुई। लेकिन, सम्पत्ति के अनुसार राजनीतिक अधिकारों का श्रेणीकरण राज्य के लिये कोई लाजिमी नियम नहीं था। राज्यों के संवैधानिक इतिहास में उसका भले ही वहुत बड़ा महत्त्व मालूम पड़ता हो, परन्तु बहुत-से राज्य , और उनमे भी सबसे अधिक विकसित राज्य, इस श्रेणीकरण के बिना ही काम चलाते थे। एथेंस मे भी उसकी केवल एक अल्पकालिक भूमिका रही। एरिस्टीडिज के समय से सारे सार्वजनिक पद सभी तरह के नागरिकों को मिलने लगे थे। अगले अस्सी वर्षों में एथेनी समाज ने धीरे-धीरे वह मार्ग पकडा जिस पर चलते हुए उसने आगे कई शताब्दियों तक विकास किया। सोलन से १४८
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