पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१४०

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- इसके बाद सोलन के ममय तक एथेंस का जो राजनीतिक इतिहास रहा है, उसका हम केवल अपूर्ण ज्ञान है। वैसिलियस का पद धीरे-धीरे लुप्तप्रयोग हो गया और अभिजात वर्ग में से चुने हुए प्रार्कोन राज्य के प्रमुख बन गये। अभिजात वर्ग को शासन-मता बराबर बढ़ती गयी, यहा तक कि ६०० ई० पू० तक यह प्रमह्य हो उठी। साधारण लोगो की स्वतंत्रता का गला घोटने के दो मुख्य उपाय थे - मुद्रा और मूदखोरी। अभिजात वर्ग के लोग अधिकतर एथेंस में या उसके इर्द-गिर्द रहते थे, जहां समुद्री व्यापार और कभी-कभी इसके साथ-साथ समुद्री डकैती की बदौलत वे मालामाल हो रहे थे और बहुत-सा रुपया-पैसा अपने हाथों में बटोर रहे थे। यही से बढ़ती हुई मुद्रा-व्यवस्था, विनिमयहीन अर्थ-व्यवस्था की नीव पर खड़े गाव- ममुदायों के परम्परागत जीवन को तेज़ाब की तरह काटती हुई उसमें घुस गयी । गोत्र-संघटन का मुद्रा-व्यवस्था से कतई मेल नहीं है। जैसे-जैसे ऐटिका के छोटे-छोर्ट किमान आर्थिक दृष्टि से बरवाद होते गये , वैसे-वैसे गोत्र- व्यवस्था के वे पुराने बंधन भी ढीले पड़ते गये जो पहले उनकी रक्षा किया करते थे। एथेंसवामियो ने इस समय तक रेहन की प्रथा का भी प्राविष्कार कर लिया था और महाजन की हुंडी और रेहननामा न तो गोत्र का लिहाज़ करते थे और न बिरादरी का। परन्तु पुरानी गोत्र-व्यवस्था मुद्रा , उधार और नकदी कर्ज से अपरिचित थी। इसलिये, अभिजात वर्ग के लगातार बढते हुए मुद्रा-शासन के कर्जदार से महाजन की रक्षा करने के लिये और रुपयेवाले द्वारा छोटे किसान के शोषण को मान्यता प्रदान करने के लिये एक प्रथा के रूप में एक नये कानून को जन्म दिया। ऐटिका के देहाती इलाको में जगह-जगह खेतो में खम्भे गड गये, हर खम्भे पर लिखा रहता था कि जिस जमीन पर यह खम्भा खडा है, वह इतने रपये पर अमुक आदमी को रेहन कर दी गयी है। जिन खेतो में ऐसे खम्भे नहीं थे, उनमे से अधिकतर रेहन की मियाद बीत जाने के कारण, या सूद न अदा होने के कारण बिक चुके थे और अभिजातवर्गीय सूदखोरों की सम्पत्ति बन गये थे। किसान अपने को वडा भाग्यशाली समझता था यदि उसे लगान देनेवाते काश्तकार के रूप में खेत जोतने की इजाजत मिल जाती थी और अपनी पैदावार के छः में से पांच हिस्से लगान के रूप में नये मालिक को देकर उसे खुद छठे हिस्से के सहारे जीवित रहने दिया जाता था। यही नही, जो जमीन रेहन कर दी गयी थी, उमकी विक्री से यदि महाजन का पूरा , १४२