से विकसित जनवादी समाज के भीतर एक अभिजात तत्त्व उत्पन्न हुआ। छोटी-मोटी विभिन्न जन-जातियां सबसे अच्छी जमीन पर कब्जा करने के लिये, और लूट-मार के उद्देश्य से भी, सदा आपस में लड़ती रहती थी। युद्धबंदियो को दास बनाने की प्रथा मान्य हो गयी थी। इन कबीलो और छोटी-मोटी जन-जातियों का संघटन इस प्रकार का होता था: १. स्थायी रूप से अधिकार एक परिषद् , bule, के हाथ में होता था। इसके सदस्य शुरू मे संभवतः गोत्रो के मुखिया हुआ करते थे, परन्तु बाद में जब उनकी संख्या बहुत बडी हो गयी तो उनमें से भी कुछ लोगों को छांट करके परिपद् में लिया जाने लगा। इससे अभिजात तत्त्व को विकास करने और मजबूत होने का मौका मिला। डायोनीसियस निश्चित रूप से बताता है कि वीर-काल में प्रतिष्ठित व्यक्ति (kratistoi) 103 परिपद् के सदस्य हुआ करते थे। महत्त्वपूर्ण मामलों में आखिरी फंगला परिपद् के हाथ मे होता था। ईस्खिलस मे हम पढ़ते है कि थीवीस की परिषद् ने यह फैसला किया था और उसे मानना सब के लिये जरूरी था-कि इतियोक्लीज के शव को पूर्ण सम्मान के साथ दफनाया जाये और पोलीनाइसीज़ के शव को कुत्तो के आगे फेंक दिया जाये। 103 बाद में जब राज्य का उदय हुआ, तो यह परिपद् सीनेट में बदल गयी। २. जन-सभा (agora)| इरोक्वा लोगो में हम देख चुके है कि जब उनकी परिपद् बैटती थी तो माधारण लोग, स्त्री और पुरप, एक घेरा बनाकर चारो ओर खडे हो जाते थे, व्यवस्थित ढंग से बहस में हिस्सा लेते थे, और इस प्रकार परिषद् के फैसलो पर अपना असर डालते थे । होमर के काल के यूनानियों में यह "घेरा" (Umstand), यदि हम जर्मन भाषा के एक पुराने कानूनी शब्द का प्रयोग करें तो, एक पूर्ण जन-सभा मे बदल गया था जैसा कि वह प्राचीन जर्मनों में भी बदल गया था। परिषद् महत्त्वपूर्ण मामलों पर विचार करने के लिये जन-सभा को बुलाती थी। सभा में हर पुरुष को बोलने का अधिकार होता था। फैसला या तो हाथ उठाकर किया जाता था (जैसा कि ईस्खिलस के 'प्रार्थी-गण' में वर्णन है), या आवाज़ देकर। जन-सभा का निर्णय सर्वोच्च और अन्तिम होता था, क्योंकि जैसा कि शोमान ने अपनी पुस्तक 'यूनानी पुरातत्त्व' में कहा है। . १३३
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