इससे जाहिर होता है कि प्राचीन काल मे रक्त-प्रतिशोध लेना विरादरी का एक कर्तव्य था। इसके अलावा हर विरादरी के समान देव-स्थान और समान त्यौहार होते है। कारण कि पार्यों की प्राचीन परम्परागत प्रकृति- पूजा से समस्त यूनानी पुराण का विकास बुनियादी तौर पर गोत्रो और बिरादरियो के कारण और उनके भीतर हुआ था। विरादरी का एक मुखिया (phratriarchos) भी होता था, और दे कुलांज के मतानुसार उसकी ऐसी परिपदें भी होती थी जिनका फैसला मानना अनिवार्य होता था और उसकी एक अदालत तथा शासन व्यवस्था भी होती थी। 101 परवर्ती काल के राज्य तक ने गोत्र की अवहेलना की पर बिरादरी के हाथ मे कुछ सार्वजनिक काम छोड़ दिये गये। एक दूसरे से सम्बन्धित कई बिरादरियों को मिलाकर एक कबीला बनता था। ऐटिका में चार कवीले थे जिन में से हर एक मे तीन-तीन बिरादरियां थी और हर एक बिरादरी मे तीस-तीस गोत्र थे। समूहो में इस विस्तृत विभाजन से प्रकट होता है कि जो व्यवस्था स्वयंस्फूर्त ढंग से कायम हुई थी उसमे सचेतन और सुनियोजित ढंग से हस्तक्षेप किया गया था। ऐसा क्यो, कब और कैसे किया गया, यह यूनानी इतिहाम नहीं बताता, क्योकि यूनानियो ने जिन स्मृतियों को सुरक्षित रखा था वे वीर-काल से ज्यादा पुरानी नही थी। यूनानी तोग चूकि अपेक्षाकृत छोटे जनसंकुल प्रदेश में रहते थे, इसलिये उनकी बोलियों में उतना स्पष्ट अन्तर नहीं था, जितना अमरीका के विस्तृत जंगलों में रहनेवाले लोगों में विकसित हुआ था। फिर भी हम यहां पाते है कि एक मुख्य बोली बोलनेवाले कबीले ही एक बड़े समुदाय में संघबद्ध होते है। यहा तक कि नन्हे से ऐटिका को भी अपनी बोली थी जो वाद में चलकर यूनानी गद्य की प्रचलित भाषा बन गयी थी। होमर के महाकाव्यो में ग्राम तौर पर हम यह पाते है कि यूनानी कबीलो ने मिलकर छोटी-छोटी जन-जानिया बना ली थीं। परन्तु हर जन- जाति के भीतर गोत्रो, विरादरियो और कवीलो को अय भी पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। उन्होने अभी से परकोटेदार शहरों में रहना शुरु कर दिया था। जानवरो के रेवड़ी के बढन, खेत बनाकर खेती करने की प्रथा के प्रारम्भ होने और दस्तकारी की शुरूपात मे जनमंध्या में वृद्धि हुई। इसके माप-माय मम्पत्ति के भेद बढे, जिसके परिणामस्वरूप पुगने, महज प १३२
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